अवैध कटाई से पहाड़ बने तबाही का मैदान और जनता बेहाल : सुप्रीम कोर्ट

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एएम नाथ । नई दिल्ली/शिमला :  सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि पहाड़ी इलाकों में जंगलों की अवैध कटाई इंसानियत के लिए आफ़त बन रही है। अदालत ने टिप्पणी की कि जब जंगल ही उजाड़ दिए जाएंगे तो नदियां अपना रुख़ बदलेंगी और पहाड़ खिसकेंगे।

यह कटाई सिर्फ क़ानून तोड़ना नहीं बल्कि कुदरत से खिलवाड़ है। कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की स्थिति पर खास चिंता जताई। इन राज्यों में लगातार बारिश के बाद भूस्खलन और बाढ़ ने दर्जनों गांव उजाड़ दिए। सड़कों का संपर्क टूटा, मकान ध्वस्त हुए और आम लोग बेघर हो गए। अदालत ने कहा कि ये सब कुदरत का ग़ुस्सा है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, एनडीएमए और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया। अदालत ने पूछा कि आखिर अवैध कटाई पर अब तक सख्ती क्यों नहीं की गई। कोर्ट ने कहा कि अगर जंगलों को बचाने की हिफ़ाज़त नहीं की गई तो आने वाले सालों में हालात और भयानक होंगे।

जनता की मुसीबतें बढ़ीं

भूस्खलन और बाढ़ की वजह से आम जनता की ज़िंदगी मुश्किल हो गई है। कहीं सड़कें टूटीं, कहीं पुल बह गए। किसान अपनी फ़सल खो बैठे और रोज़ाना मज़दूरी करने वाले बेरोज़गार हो गए। अदालत ने कहा कि ये मुसीबत सिर्फ मौसम की नहीं बल्कि इंसानी लापरवाही का नतीजा है। स्कूलों में पढ़ाई ठप हो गई और बच्चों को सुरक्षित जगहों पर ले जाना पड़ा। कई लोग राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हो गए। गांव-गांव में पीने के पानी और खाने का संकट खड़ा हो गया। गरीब तबका सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ और उनकी आवाज़ सरकार तक नहीं पहुँच पा रही।

बिगड़ रहा है पर्यावरण संतुलन

वैज्ञानिकों का कहना है कि जंगल कुदरत का ढाल होते हैं। पेड़ पानी को रोकते हैं और मिट्टी को संभालते हैं। जब पेड़ ही कट जाएंगे तो मिट्टी बह जाएगी और नदियां उफ़ान मारेंगी। कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण का ये असंतुलन आने वाली नस्लों के लिए भी ख़तरा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लेशियर पिघलने की रफ़्तार भी तेज़ हो रही है। पहाड़ों की हरियाली खत्म होने से पक्षियों और जानवरों का बसेरा उजड़ गया है। जहां कभी ठंडी हवाएं बहती थीं, वहां अब धूल और गर्मी फैल रही है। ये हालात बताते हैं कि इंसान ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चलाई है।

जंगल बचाओ, इंसानियत बचाओ

सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने अब भी कार्रवाई नहीं की तो हालात काबू से बाहर हो जाएंगे। अदालत ने कहा कि जंगलों को बचाना सिर्फ क़ानून का मसला नहीं बल्कि इंसान की ज़िंदगी और रोज़ी-रोटी का सवाल है। यह वक़्त है जब इंसानियत को कुदरत के साथ मेल बैठाना होगा। अदालत ने यह भी कहा कि सरकार को सख़्त कानून बनाकर उनका पालन करवाना होगा।

स्थानीय स्तर पर लोगों को जागरूक करना ज़रूरी है ताकि वो पेड़ों की हिफ़ाज़त कर सकें। पर्यावरण को बचाना सिर्फ अदालत या सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं बल्कि हर शख़्स का फ़र्ज़ है। अगर अभी कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य की पीढ़ियाँ हमें माफ़ नहीं करेंगी।

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