उपराष्ट्रपति ने डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के शब्दों पर जोर दिया – “आपको पहले भारतीय होना चाहिए, अंत में भारतीय, और भारतीय के अलावा और कुछ नहीं

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रोहतक : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज उपराष्ट्रपति  जगदीप धनखड़ ने आज रोहतक में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया और उन्होंने युवाओं को सशक्त बनाने वाले सकारात्मक इको-सिस्टम की सराहना की। आज युवाओं के लिए उपलब्ध अवसरों की विशाल संभावनाओं पर प्रकाश डालते और स्नातकों को अपनी सफलता की कहानियां लिखने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज के इको-सिस्टम में “कुछ भी असंभव नहीं है, जैसा कि शब्द स्वयं इंगित करता है, ‘मैं संभव हूं’!”

एक युग के अंत और एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक होने के नाते स्नातक प्रक्रिया को एक ‘खट्टा-मीठा क्षण’ बताते हुए उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि यह परिवार, शिक्षकों और मातृ-संस्था के लिए एक आनंददायक, अविस्मरणीय क्षण है। इसके अलावा, उपराष्ट्रपति ने छात्रों को जीवन भर ज्ञान और सीखने की खोज जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। सादगी और सदाचार के प्रतीक स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन से प्रेरणा लेते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्वामीजी ने अपना जीवन सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने और वेदों की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने आगे कहा, ‘भारत वर्तमान में काफी हद तक स्वामी जी के सपनों का प्रतिबिंब है।’

उपराष्ट्रपति ने छात्रों से आग्रह किया कि वे हमेशा अपने शिक्षकों, अपने राष्ट्र का सम्मान करें और अपने माता-पिता का ख्याल रखें। वृद्धाश्रमों की वृद्धि पर दुख व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने टिप्पणी की कि हमारे देश में वृद्धाश्रमों की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि हमारे समाज में पारिवारिक बंधनों और रिश्तों को महत्व दिया जाता है। उपराष्ट्रपति ने छात्रों से आह्वान किया कि वे हमेशा अपने माता-पिता और बड़ों का ख्याल रखें, चाहे उनकी स्थिति कुछ भी हो, उनका निवास स्थान कुछ भी हो, चाहे उन्होंने जीवन में कितना भी नाम, प्रसिद्धि और धन कमाया हो।  उन्होंने आगे कहा कि भगवान की सच्ची भक्ति माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा में ही है। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि युवा पीढ़ी को डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के शब्दों का पालन करना चाहिए, अर्थात् “आपको पहले भारतीय होना चाहिए, अंत में भारतीय, और कुछ नहीं बल्कि भारतीय।” उन्होंने सवाल उठाया कि भारतीयता में विश्वास और भारत का नागरिक होने का दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति हमारे देश की अखंडता को कैसे कमजोर कर सकता है, कैसे इसकी प्रगति में बाधा डाल सकता है, या इसके संवैधानिक संस्थानों को कैसे बदनाम कर सकता है, चाहे वह देश के भीतर हो या इसकी सीमाओं के बाहर।

उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, मशीन लर्निंग, ग्रीन हाइड्रोजन और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी विघटनकारी प्रौद्योगिकियों का सामना कर रही है, जिसके मद्देनजर सरकार ने क्वांटम कंप्यूटिंग के लिए 6000 करोड़ और ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के लिए 9000 करोड़ रुपये की महत्वपूर्ण धनराशि आवंटित की है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि इस निवेश के कारण “2030 तक 8 लाख करोड़ का निवेश होगा और लगभग 6 लाख नौकरियां पैदा होंगी।”  किसी भी विचार को क्रियान्वित करने के लिए साहस और दृढ़ता के महत्व को रेखांकित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “एक पैराशूट तभी काम करता है जब वह खुला होता है। पैराशूट की तरह महान मस्तिष्क का होना किसी काम का नहीं है। यदि आप इसे गिरा देते हैं और नहीं खोलते हैं, तो आपको परिणाम भुगतना पड़ेगा।”  इस बात पर जोर देते हुए कि “ईमानदारी, जवाबदेही, पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा” आज शासन के ऐसे तत्व हैं, जिनके साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि शासन परिदृश्य आज कानून और उसके प्रवर्तन के समान पालन के साथ बदल गया है, जिसमें कोई भी अछूता नहीं है। उन्होंने आगे कहा, “स्थिति यह है कि कुछ लोग सोचते हैं कि कोई एजेंसी हमारी पड़ताल नहीं कर सकती; कुछ लोग सोचते हैं कि हम कानून की पहुंच से परे हैं। वह परिदृश्य पूरी तरह ध्वस्त हो गया है।”

उपराष्ट्रपति ने “फ्रेजाइल-फाइव” अर्थव्यवस्थाओं से वैश्विक स्तर पर शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने में भारत के परिवर्तन की प्रशंसा की। उन्होंने इस अनुमान पर प्रकाश डाला कि दशक के अंत तक, जापान और जर्मनी दोनों को पछाड़कर भारत तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में स्थान हासिल करने के लिए तत्पर है।  भ्रष्ट सत्ता दलालों से त्रस्त युग से बदलाव का जिक्र करते हुए, उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि आज हमने एक ऐसा इको-सिस्टम स्थापित किया है, जहां सत्ता के गलियारे भ्रष्टाचार और बिचौलियों से मुक्त हैं तथा “कानून के समक्ष समानता और जवाबदारी अब एक जमीनी हकीकत है।” विफलता को सबसे बड़े शिक्षक और अंततः सफलता की पहली सीढ़ी के रूप में बताते हुए, उपराष्ट्रपति ने छात्रों को सलाह दी कि वे असफलता से कभी न डरें और कभी निराश न हों। इस अवसर पर हरियाणा के  राज्यपाल और महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के कुलाधिपति  बंडारू दत्तात्रेय, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत, हरियाणा सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री  मूलचंद शर्मा, हरियाणा सरकार के उच्च शिक्षा अपर मुख्य सचिव आनंद मोहन शरण, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजबीर सिंह, अन्य प्रोफेसर और गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

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