*किसानों की चिंता और प्राकृतिक खेती को लेकर विधायक केवल सिंह पठानिया की संवेदनशील पहल*

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*खुद खेतों में उतरे, वैज्ञानिकों के साथ की मंथन बैठक, किसानों को आत्मनिर्भर और स्वस्थ बनाने का संकल्प*
एएम नाथ। शाहपुर, 23 जुलाई ।  उपमुख्य सचेतक एवं शाहपुर के विधायक केवल सिंह पठानिया ने एक बार फिर यह साबित किया कि वे सिर्फ भाषण नहीं, बल्कि व्यवहार से किसानों के सच्चे हितैषी हैं। उन्होंने स्वयं खेतों में उतरकर खेती की और किसानों को यह संदेश दिया कि प्राकृतिक खेती से न केवल आय बढ़ाई जा सकती है, बल्कि परिवार की सेहत को भी बेहतर बनाया जा सकता है।
*खेतों में वैज्ञानिकों संग मंथन*
अपने निवास स्थान के समीप खेतों में स्वयं खेती करते हुए विधायक पठानिया ने चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. नवीन कुमार, प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. विनोद शर्मा, कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. राहुल कटोच, और वैज्ञानिक डॉ. दीप कुमार के साथ मिलकर किसानों की आयवृद्धि के लिए गहन विचार-विमर्श किया। बैठक में यह तय किया गया कि किसानों की फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले कारणों की पहचान कर त्वरित समाधान लागू किया जाएगा।
*नुकसानदायक घास के उन्मूलन पर निर्देश*
कुछ दिन पहले रेहलू, दरगेला और ठम्बा क्षेत्र में हानिकारक घास की समस्या को देखते हुए विधायक पठानिया ने कृषि विभाग को तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। उनके निर्देश पर कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग की संयुक्त टीम ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और किसानों को जागरूक किया कि धान के खेतों में इस घास को 24-D ईथायल दवा से तथा खाली क्षेत्रों में ग्लाइफोसेट या पैराक्वायर दवाओं से समाप्त किया जा सकता है। इस घास को स्थानीय भाषा में एलिगेटर, नाली घास या दूधली घास कहा जाता है।
*प्राकृतिक खेती को दिया बढ़ावा*
विधायक केवल पठानिया ने खुद अपने खेतों में बैगन, भिंडी और तोरी जैसी सब्जियाँ उगाकर यह उदाहरण प्रस्तुत किया कि थोड़ी सी मेहनत और प्राकृतिक खेती के जरिए आम आदमी भी आत्मनिर्भर बन सकता है। उन्होंने कहा कि यदि हर किसान अपने आँगन या खेत में मौसमी फल और सब्जियाँ उगाए तो न केवल उसकी आय बढ़ेगी, बल्कि परिवार का स्वास्थ्य भी सुधरेगा।
*शाकवाटिका से प्रेरणा का संदेश*
पठानिया ने अपनी शाकवाटिका में प्राकृतिक विधि से उगाई गई सब्जियों को दिखाया और बताया कि वे किसी भी रासायनिक खाद या कीटनाशक का उपयोग नहीं करते। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि वे किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित करें ताकि मिट्टी, वातावरण और मानव स्वास्थ्य तीनों का संतुलन बना रहे और एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके।
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