एएम नाथ। शिमला : भियुंखरी स्थित तारपीन की फैक्टरी में पिछले साल मई माह में भी आग लगी थी। उस समय फैक्टरी के साथ बने वेस्ट टैंक में आग लग गई थी। इसमें कंपनी को सुरक्षित बचा लिया था। इस बार फैक्टरी पूरी तरह से जल गई है।
टैंक में ज्वलनशील पदार्थ बिरोजा होने से कारण कंपनी इस टैंक का बंद कर दिया था। फैक्टरी संचालकों ने अब कंपनी के अंदर ही छोटा टैंक बना लिया था। इस टैंक में बिरोजा व तारपीन का वेस्ट डाला जाता था। पहले बड़ा टैंक होने से इसके अलग से इस्तेमाल करके तारपीन का तेल निकाला जाता था, लेकिन पिछले साल आग लगने के कारण इस टैंक को परमानेंट बंद कर दिया था। यह टैंक कंपनी से थोड़ी दूरी पर था और इसमें आग लगने की संभावना अधिक थी।
शाम को फैक्टरी बंद करते ही इसमें शट्डाउन कर दिया जाता है। अगर कोई रात के समय फैक्टरी में जाता है तो उसके लिए एमडी से परमिशन लेनी पड़ती है। लेकिन लाइट बंद होने के बावजूद आग कैसे लगी यह पहेली बना हुआ है। फैक्टरी के साथ ही खड्ड है इसमें लगातार पानी बह रहा था। पहाड़ी क्षेत्र होने के नाते पानी की किल्लत रहती है, लेकिन दमकल विभाग ने बड़ी सूझबूझ से काम लिया और खड्ड में दो टुल्लू पंप लगाकर लगातार पानी आग पर डालते रहे। जिस कारण साथ लगती कत्था फैक्टरी भी बच गई। कंपनी के संचालक मनोहर लाल के भाई राहुल शर्मा ने बताया कि कंपनी में आग लगना रहस्य बना हुआ है।
रात के समय बिजली पूरी तरह से बंद कर दी जाती है। पिछले साल वेस्ट टैंक में आग लगने के बाद पूरी एहतियात बरती गई थी लेकिन उसके बावजूद बंद कंपनी में आग लगना रहस्य बना हुआ है। तारपीन फैक्टरी के नीचे रिहायशी मकान हैं। जैसे आग लगी तो तारपीन व बिरोजा पिघलती हुए 30 फीट नीचे कमरों तक पहुंचा। वहां दो साइड क्वार्टर थे। एक साइड के क्वार्टर सुरक्षित बच गए लेकिन दूसरी तरफ के क्वार्टर आग की चपेट में आ गए। उन्होंने बताया कि सभी कामगारों को आग लगने के बाद जगाया गया लेकिन शिव कुमार व अर्जुन ने अपने कमरे का कुंडा अंदर से लगाया हुआ था। लोगों ने उनका कमरा कई बार जोर-जोर से खटखटाया लेकिन वह गहरी नींद में होने से उन्हें पता नहीं चल पाया। जिससे उनकी मौत हो गई।