एएम नाथ। शिमला : हिमाचल प्रदेश सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की दिशा में एक दूरदर्शी और ऐतिहासिक कदम उठाया है। राज्य में पहली बार दूध पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू किया गया है, जो प्रदेश के इतिहास में एक क्रांतिकारी पहल मानी जा रही है।
यह कदम ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे दूध उत्पादकों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य दिलाने और उनकी आय को सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।
एक सरकारी प्रवक्ता ने रविवार काे बताया कि प्रदेश सरकार के इस निर्णय से हिमाचल प्रदेश दुग्ध प्रसंघ प्रतिदिन औसतन 38,400 किसानों से 2.25 लाख लीटर गाय का दूध 51 रुपये प्रति लीटर की दर से खरीद रहा है। इसके अतिरिक्त, 1,482 भैंस पालकों से 7,800 लीटर दूध प्रतिदिन 61 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से खरीदा जा रहा है। इसी तरह ऊना जिले में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में बकरी पालकों से 70 रुपये प्रति लीटर की दर से बकरी का दूध खरीदा जा रहा है। कुल मिलाकर राज्य में प्रतिदिन 2.32 लाख लीटर दूध की खरीद हो रही है।
प्रवक्ता ने कहा कि प्रदेश सरकार ने दूध की ढुलाई करने वाली समितियों को प्रोत्साहित करने के लिए परिवहन सब्सिडी को बढ़ाकर 3 रुपये प्रति लीटर कर दिया है। साथ ही दो किलोमीटर से अधिक दूरी तक दूध केंद्रों तक दूध पहुंचाने वाले पशुपालकों और समितियों को 2 रुपये प्रति लीटर की अतिरिक्त सहायता दी जा रही है। इसके साथ ही दूध की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए बल्क मिल्क कूलर स्थापित किए जा रहे हैं जिससे किसानों को कमीशन भी प्राप्त होगा।
उन्हाेंने कहा कि वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में कुल 11 दूध विधायन संयंत्र कार्यरत हैं, जिनकी कुल क्षमता 1.80 लाख लीटर प्रतिदिन है। शिमला जिले के दत्तनगर में पांच मीट्रिक टन प्रतिदिन की क्षमता वाला एक मिल्क पाउडर संयंत्र चल रहा है जबकि हमीरपुर जिले के भौर में 16 मीट्रिक टन प्रतिदिन की क्षमता वाला पशु आहार संयंत्र स्थापित किया गया है। दूध खरीद प्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए प्रदेश में स्वचालित मिल्क कलेक्शन यूनिट्स (एएमसीयूएस) स्थापित की जा रही हैं।
प्रवक्ता के अनुसार पदूध उत्पादकों को हर महीने औसतन 39.48 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ मिल रहा है, जो अब तक का सबसे अधिक लाभ है। राज्य सरकार सीमांत और दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले दूध उत्पादकों से उनके घर-द्वार पर जाकर दूध एकत्रित कर रही है ताकि उन्हें किसी प्रकार की असुविधा न हो और उनकी आमदनी सुनिश्चित हो सके।
उन्हाेंने कहा कि स्वच्छ और गुणवत्तायुक्त दूध के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए गांवों में दूध शीतलन केंद्र और मिनी प्लांट्स स्थापित किए जा रहे हैं। बीते दो वर्षों में प्रसंघ ने प्रदेश के विभिन्न इलाकों में अलग-अलग क्षमताओं के बल्क मिल्क कूलर लगाए हैं। इसके साथ ही महिला स्वयं सहायता समूहों और दुग्ध उत्पादक समितियों के गठन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इससे न केवल दूध का संग्रहण बेहतर हुआ है, बल्कि महिलाओं और ग्रामीण युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है।
दूध की गुणवत्ता जांचने के लिए 222 ऑटोमेटिक मिल्क कलेक्शन यूनिट्स और 32 डीपीएमसीयू लगाए गए हैं। साथ ही, दूध संग्रहण प्रक्रिया का डिजिटलीकरण भी पायलट आधार पर आठ समितियों में शुरू कर दिया गया है।
प्रवक्ता ने बताया कि पहिम गंगा योजना के पहले चरण को हमीरपुर और कांगड़ा जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है। मिल्कफेड ने अब तक 268 नई दुग्ध उत्पादक समितियों का गठन किया है, जिनमें 46 समितियां हमीरपुर और 222 समितियां कांगड़ा जिले से संबंधित हैं। इन समितियों में 20 महिला समितियां भी शामिल हैं। अब तक कांगड़ा में 107 और हमीरपुर में 11 समितियों का पंजीकरण किया जा चुका है।
उन्हाेंने कहा कि 15 नवंबर 2024 को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने शिमला जिले के दत्तनगर में 50 हजार लीटर प्रतिदिन क्षमता वाले नए दूध प्रसंस्करण संयंत्र का उद्घाटन किया। इसके साथ अब वहां कुल प्रसंस्करण क्षमता 70 हजार लीटर प्रतिदिन हो गई है। इसके अतिरिक्त मिल्कफेड ने मंडी, नाहन, मोहल, परेल और ढगवार सहित छह प्रमुख संयंत्रों और दो मिल्क कूलिंग सेंटरों के बुनियादी ढांचे को बेहतर करने के लिए 19.54 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के सहयोग से ढगवार (कांगड़ा) में 200.43 करोड़ रुपये की लागत से 3 लाख लीटर प्रतिदिन क्षमता वाला पूरी तरह स्वचालित दूध प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किया जा रहा है। साथ ही एनपीडीडी 2.0 परियोजना के अंतर्गत नाहन, नालागढ़ और मौहल में 20 हजार लीटर प्रतिदिन क्षमता के तीन नए संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। ऊना और हमीरपुर में दो मिल्क चिलिंग सेंटर और रोहड़ू में 20 हजार एलपीडी क्षमता का दूध प्रसंस्करण संयंत्र जाईका परियोजना के तहत बनेगा।