बईं किनारे सड़क बनाने की योजना सरकार को भेजी – घूमन
पाँच प्यारों की अगुवाई में नए गुरु घर की रखी गई नींव
दसूहा, 09 नवंबर : श्री गुरु नानक देव जी के 556वें प्रकाश पर्व को समर्पित पाँचवां हरा नगर कीर्तन पवित्र बईं नदी के मूल स्रोत गाँव धनोआ से शुरू होकर विभिन्न गाँवों से होता हुआ निर्मल कुटिया गालोवाल में संपन्न हुआ। यहाँ पहुँचने के बाद पाँच प्यारों द्वारा “बोले सो निहाल” के जयकारों के बीच नए बनने वाले गुरुद्वारा साहिब की नींव रखी गई। इस नगर कीर्तन में बड़ी संख्या में संगतों ने भाग लिया। दसूहा हलके के विधायक कर्मवीर सिंह घूमन ने संगत को बताया कि बईं किनारे सड़क निर्माण की योजना उन्होंने पंजाब सरकार को भेज दी है।
राज्यसभा सदस्य और पर्यावरण प्रेमी संत बलबीर सिंह सीचेवाल जी ने नगर कीर्तन के दौरान बड़े पैमाने पर पौधों का प्रसाद वितरित किया। पूरे नगर कीर्तन के दौरान संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने संगतों को जहाँ श्री गुरु नानक देव जी के उपदेशों से अवगत कराया, वहीं हवा, पानी और धरती की रक्षा के लिए सर्वजन के कल्याण की अरदास भी की।
नगर कीर्तन शुरू करने से पहले श्री गुरु ग्रंथ साहिब के आगे संत सीचेवाल जी द्वारा की गई अरदास में पंजाब की नदियों और दरियाओं को प्रदूषण मुक्त करने का मुद्दा गंभीरता से उठाया गया। इस अरदास के दौरान संत सीचेवाल कहते हैं — “सरकारों को सुमत बख्शो, सिस्टम को सही राह पर लाओ, विनाशकारी ताकतों को अपने वश में करो, लोगों को समझ बख्शो, ताकि हवा, पानी और धरती आने वाली पीढ़ियों के उपयोग योग्य रह सकें।” बूढ़े दरिया की कार सेवा का भी उल्लेख अरदास में किया गया और हाल ही में आई बाढ़ से हुई तबाही के बाद चल रही सेवा को भी अरदास का हिस्सा बनाया गया। यह अरदास, जो सभी नगर कीर्तनों में की जाती है, आजकल चर्चा का विषय बनी हुई है।
क्षेत्र के किसानों ने भी संत बलबीर सिंह सीचेवाल जी का धन्यवाद किया कि उनकी अगुवाई में पवित्र बईं की सफाई से क्षेत्र में सैम (खारी मिट्टी) की समस्या खत्म हो गई है। किसानों का कहना था कि पवित्र बईं के किनारे-किनारे फिर से नगर कीर्तन की शुरुआत की जानी चाहिए।
यह नगर कीर्तन सुबह 8 बजे गाँव धनोआ के गुरुघर से शुरू होकर हिम्मतपुर, शताबकोट, वधैया, टेरकियाणा, छुड़ियां, नहर पुल, बरारोवाल, बेगपुर, भेखोवाल, खेपड़ा, भोगियां, सैदोवाल, घइया, बुद्धोबरकत, छौरियां, गालोवाल नया और गालोवाल पुराना से होता हुआ शाम को पवित्र बईं के किनारे स्थित निर्मल कुटिया गालोवाल पहुँचकर संपन्न हुआ।
