लेजर एब्लेशन व फोम स्कलेरोथेरेपी से वेरीकोज वेन्स के गंभीर से गंभीर मरीज हो रहे हैं स्वस्थ, दर्द रहित इलाज संभव
होशियारपुर, 2 सितंबर: जांघों व पिंडलियो में नीले-लाल व बेंगनी रंग की नसों का उभरना, भारीपन व अकडऩ जैसे लक्ष्ण दिखें तो इसे नजरअंदाज न करें यह नसों के फूलने की बीमारी है। यह बात जाने माने जाने माने वेस्कूलर सर्जन डा. रावुल जिंदल ने होशियारपुर में आयोजित एक पत्रकारवार्ता में कही, जो कि वेरीकॉज वेनस यानि नसों के फूलने की बीमारी एवं इसके उपचार में आए तकनीकी बदलाव संबंधी जागरूक करने के लिए शहर में पहुंचे थे।
फोर्टिस अस्पताल में वेस्कूलर सर्जरी के डायरेक्टर डा. रावुल जिंदल ने कहा कि नसों की सूजन को नजरअंदाज करना हानिकारक हो सकता है। इस तरह के लक्षण नजर आने पर इसका तुरंत उपचार कराना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि कई बार पीडि़त मरीज द्वारा लगातार खुशकी करने से अल्सर भी हो सकता है। बीमारी के कारण पैर में तेज दर्द शुरू हो जाता है। मरीज अपना पैर हिला भी नहीं सकता। इस बीमारी का प्रमुख कारण लंबे समय तक खड़े रहना माना जाता है। उन्होंने कहा कि पहले बुजुर्गों व महिलाओं में ऐसी बीमारी के ज्यादा लक्ष्ण देखने को मिलते थे, परंतु अब खराब जीवनशैली के कारण युवा भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं में इस बीमारी के फैलने का कारण शारीरिक व्यायाम न करना तथा एक ही जगह पर घंटों बैठे रहना है।
उन्होंने बताया कि ऐसी बीमारी का इलाज मात्र सर्जरी है तथा यदि पीडि़त व्यक्ति समय पर ऐसे अस्पताल पहुंचता है, जहां माहिर डाक्टरों की टीम व उत्तम तकनीक मौजूद हों, तो पीडि़त जल्द स्वस्थ हो सकता है। उन्होंने बताया कि हाल ही में 45 वर्षीय मरीज जिसके पैरों में तेज दर्द के साथ सूजन थी, चिकित्सा जांच में उसके दोनों पैरों में वैरिकोज वेन्स का पता चला, जिसका कि लेजर एब्लेशन तकनीक से इलाज किया गया, जबकि उभरी हुई वैरिकोज व स्पाइडर नसों का इलाज फोम स्कलेरोथेरेपी से किया गया। उन्होंने बताया कि मरीज सर्जरी के उपरांत पूरी तरह से स्वस्थ है तथा बिना किसी सहारे के चलने में सक्षम हो पाया है।
वैरिकाज़ नसों के उपचार में नवीनतम तकनीकी प्रगति के बारे में चर्चा करते हुए हुए डॉ जिंदल ने कहा कि आधुनिक एडवांस्ड ट्रीटमेंट विकल्प कम दर्दनाक हैं और जल्दी ठीक होने को सुनिश्चित करते हैं। प्रक्रिया में लगभग 30 मिनट लगते हैं और रोगी प्रक्रिया के एक घंटे के भीतर घर जा सकता है। इसके अलावा, रोगी को काफी कम दवाओं की जरूरत पड़ती है और उसे सिर्फ अपनी कुछ अतिरिक्त देखभाल करनी पड़ती है। डा. रावुल जिंदल व उनकी टीम हर माह के तीसरे बुधवार स्थानीय नारद अस्पताल में दोपहर 3 से 5 बजे तक ओपीडी के दौरान मरीजों की जांच करते हैं।