साप्ताहिक आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया

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होशियारपुर/दलजीत अजनोहा : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम गौतम नगर में साप्ताहिक आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी शंकरप्रीता भारती जी ने अपने प्रवचनों में कहा कि भारतीय संस्कृति में पृथ्वी को माता माना गया है, और वैदिक ऋचाओं में इसका गुणगान किया गया है। “माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः” — यह मंत्र हमें यह याद दिलाता है कि धरती के साथ हमारा संबंध केवल उपयोगकर्ता और संसाधन का नहीं, बल्कि संतान और जननी का है। हमारे शास्त्रों में पृथ्वी को भूदेवी, वसुधा, और गौमाता के नाम से संबोधित किया गया है, जो सहनशीलता, पोषण और करुणा की प्रतिमूर्ति हैं। श्रीमद्भगवद्गीता और अन्य धर्मग्रंथों में प्रकृति की रक्षा को यज्ञ, तप और सेवा का आवश्यक अंग माना गया है। जब हम वृक्ष लगाते हैं, जल को बचाते हैं, और भूमि को प्रदूषण से मुक्त रखते हैं, तब हम न केवल जीवन को संरक्षित कर रहे होते हैं, बल्कि उस परंपरा का निर्वहन कर रहे होते हैं जिसमें प्रकृति और जीवन एक-दूसरे के पूरक हैं। भारतीय दर्शन सिखाता है कि हम अकेले नहीं जीते; हमारा अस्तित्व पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश — इन पंचमहाभूतों से जुड़ा है, जिनका संतुलन बनाए रखना अनिवार्य है। आज, जब पृथ्वी अनेक प्रकार की चुनौतियों से जूझ रही है — जैसे जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, प्रदूषण और जैव विविधता का ह्रास — तो यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपनी धार्मिक भावनाओं को कर्म में परिवर्तित करें। हमें चाहिए कि हम पर्यावरण संरक्षण को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएं, अधिक पेड़ लगाएं, जल और ऊर्जा की बचत करें, और हर जीव के प्रति सह-अस्तित्व की भावना रखें। प्रकृति से जुड़ाव केवल बाहरी नहीं होता; यह एक आंतरिक अनुभव है, जो हमारे मन को शांति देता है और आत्मा को संतुलित करता है। हम सभी को यह विचार करना चाहिए कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए कैसी धरती छोड़ कर जा रहे हैं — एक जीवंत, हरित, और समरसता से भरी हुई धरती, या संकटग्रस्त और क्षत-विक्षत धरा। इसलिए, पृथ्वी दिवस के अवसर पर संकल्प लें कि हम पृथ्वी की रक्षा और उसकी गरिमा बनाए रखने के लिए संकल्पबद्ध रहेंगे — न केवल आज के लिए, बल्कि आने वाले समय के लिए भी।

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