एएम नाथ। शिमला : हिमाचल को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। देवभूमि में पौराणिक मान्यताएं, देव आस्था की बातें हर किसी को हैरान कर देती हैं। प्रदेश की राजधानी शिमला से 35 किलोमीटर दूर धामी के खेल का चौरा में दिवाली के दूसरे दिन शुक्रवार को पारंपरिक पत्थर मेला हुआ। 12 मिनट तक दोनों तरफ से जमकर पत्थरों की बरसात हुई। दोपहर बाद 3:40 बजे लाल झंडे से आयोजकों का इशारा मिलते ही पहाड़ियों के दोनों ओर से पत्थरों मारने का सिलसिला शुरू हुआ।
पत्थरबाजी के बाद जमोगी खुंद की ओर के पलानिया के सुरेंद्र सिंह को पत्थर लगते ही खेल को बंद किया गया। हालांकि, खेल खत्म में कुछ समय लग गया। पत्थर लगने के तुरंत बाद सुरेंद्र को सत्ती का स्मारक खेल का चौरा में ले जाया गया। माथा टेकने के बाद सुरेंद्र को पहाड़ी पर बने भद्रकाली के मंदिर में तिलक कर परंपरा को पूरा किया गया। सुरेंद्र को इसके बाद प्राथमिक उपचार दिया गया। सदियों से चली आ रही परंपरा और पत्थर के खेल को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग जुटे। महिलाएं, बुजुर्गों में भी जोश कम नहीं था। धामी रियासत के उत्तराधिकारी जगदीप सिंह ने राज परिवार की इस परंपरा में पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि के लिए कामना की।
राज दरबार से नरसिंह भगवान के मंदिर से लिए रक्षा के फूल, निकली शोभायात्रा : धामी के पत्थर के खेल से पूर्व तीन बजे राज दरबार में स्थित नरसिहं देवता और देव कुर्गण के मंदिर में पुजारी राकेश और राजा जगदीप सिंह, राजेंद्र भारद्वाज ने कारिंदों के साथ पूजा अर्चना की। इसका बाद शोभायात्रा शुरू हुई। शोभायात्रा 3:30 पर आयोजन स्थल पर पहुंची। इसके बाद सत्ती स्मारक पर पूजा-अर्चना की गई। 3:40 से पत्थर का खेल शुरू हुआ जो 3:52 बजे तक चला। जमोगी के खूंदों की ओर से जनिया, जमोगी, प्लानिया, कोठी, चईंयां, ओखरू गांव के लोग शामिल रहे। वहीं राज परिवार के दल में तुनड़ू, धगोई, बठमाणा और इसके आसपास के युवा शामिल हुए।
नर बलि के विकल्प के रूप में शुरू हुई थी प्रथा : धामी में पत्थर के खेल की परंपरा सदियों पुरानी है। मान्यता के अनुसार धामी रियासत में एक के बाद एक अनिष्ट को होने से रोकने और लोगों की सुख-समृद्धि के लिए नरबलि की प्रथा होती थी। यहां की रानी ने इसे बंद करवाया और इसके स्थान पर पत्थर का खेल शुरू करवाया, जिससे किसी को अपनी जान न देनी पड़े और अनिष्ट भी न हो। इस विकल्प में खेल में चोट लगने पर निकलने वाले खून से भद्रकाली के खेल का चौरा में बने मंदिर में तिलक किया जाने लगा। तब से यह लगातार प्रथा चलती आ रही है। कोरोना काल में धामी रिसासत के उतराधिकारी जगदीप सिंह ने अपने खून से भद्रकाली को तिलक कर इस प्रथा को टूटने नहीं दिया। राज परिवार की ओर से बनाई गई कमेटी ही इस मेले का संचालन करती है।