हरियाणा के सियासी मौसम को समझने में भूल कर बैठे : अब अशोक तंवर का क्या होगा?

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रियाणा के कद्दावर दलित नेता अशोक तंवर एक बार फिर सियासी मौसम भांपने से चूक गए. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के स्टार प्रचारक रहे तंवर ने मतदान से 48 घंटे पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया.

तंवर के इस फैसले को बीजेपी के लिए झटका करार दिया गया. हालांकि, अब जिस तरह के नतीजे आए हैं, उससे तंवर के भी सियासी भविष्य पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं.

मौसम भांपने में फेल रहे तंवर

अशोक तंवर चुनाव प्रचार के आखिरी दिन जींद के सफीन्दो में कैंपेन कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. कांग्रेस ने तंवर की ज्वॉइनिंग को दलितों के समर्थन के रूप में प्रचार किया. हालांकि, जिस सफीन्दो सीट पर तंवर ने आखिरी प्रचार किया था, वहां पर बीजेपी ने ही जीत हासिल की है.

तंवर जिस सिरसा से आते हैं, वहां पर जरूर बीजेपी को हार मिली है. सिरसा जिले की 5 में से 3 पर कांग्रेस और 2 पर इनेलो ने जीत दर्ज की है.

हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब तंवर के साथ सियासी खेल हुआ है. 2014 में तंवर जब हरियाणा आए, तब कांग्रेस हार गई. 2019 में जब कांग्रेस मजबूती से चुनाव लड़ने जा रही थी, तब तंवर का पत्ता कांग्रेस ने काट दिया.

तंवर कुछ दिन आप में रहे, लेकिन लोकसभा से पहले आप इंडिया गठबंधन में शामिल हो गई. तंवर इसके बाद बीजेपी में गए, लेकिन सिरसा से उनका मुकाबला सैलजा से हो गया.

अशोक तंवर अब क्या करेंगे?

2014 के बाद से अब तक अशोक तंवर विपक्ष की ही राजनीति कर रहे हैं. तंवर 2014 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे. 2019 में पहले तंवर तृणमूल गए और फिर आम आदमी पार्टी में. कुछ महीनों के लिए तंवर ने खुद की भी पार्टी बनाई.

तंवर लोकसभा से पहले बीजेपी में गए. बीजेपी ने उन्हें सिरसा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया. हालांकि, तंवर चुनाव जीतने में असफल रहे. तंवर इसके बाद से ही कांग्रेस में वापस आने की कवायद में जुट गए.

तंवर की कांग्रेस में वापसी के पीछे अजय माकन का अहम रोल रहा है. तंवर कांग्रेस कोषाध्यक्ष माकन के रिश्तेदार भी हैं. वर्तमान में माकन कांग्रेस में काफी मजबूत स्थिति में हैं.

ऐसे में कहा जा रहा है कि तंवर आगे की सियासत कांग्रेस के जरिए ही जारी रख सकते हैं. तंवर पहले भी कांग्रेस में रहे हैं. हरियाणा में जिस तरह से दलित वोटबैंक कांग्रेस में छिटका है, कांग्रेस उसे पाने के लिए तंवर को फ्री ग्राउंड भी दे सकती है.

हरियाणा में दलितों की आबादी करीब 20 प्रतिशत हैं. यहां विधानसभा की 90 में से 17 सीटें दलितों के लिए रिजर्व है. इनमें से 8 सीटों पर ही कांग्रेस को जीत मिली है. कांग्रेस के दलित प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान बुरी तरह चुनाव हारे हैं.

कांग्रेस में तंवर की राह नहीं आसान

हरियाणा कांग्रेस के भीतर अशोक तंवर की राह कांग्रेस में आसान नहीं है. तंवर पहले ही भूपिंदर सिंह हुड्डा गुट की रडार में रह चुके हैं. हुड्डा गुट फिर से हरियाणा की सियासत में तंवर को मजबूत होने दें, इसकी संभावनाएं कम ही है.

2019 में हुड्डा गुट की वजह से ही तंवर ने कांग्रेस को अलविदा कहा था. तंवर जब कांग्रेस में थे, तब सिरसा में उनका सिक्का चलता था, लेकिन अब सिरसा की कमान कुमारी सैलजा के पास है.

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