कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पति और बिजनेसमैन रॉबर्ट वाड्रा से प्रवर्तन निदेशालय करोड़ों की लैंड डील और मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में पूछताछ की है. यह मामला रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी द्वारा गुरुग्राम में जमीन खरीदने से जुड़ा है।
56 साल के वाड्रा अपने सुरक्षाकर्मियों और मीडियाकर्मियों के जमावड़े के बीच सेंट्रल दिल्ली के सुजान सिंह पार्क में स्थित अपने आवास से एपीजे अब्दुल कलाम रोड तक करीब दो किलोमीटर पैदल चले. एपीजे अब्दुल कलाम रोड पर ही प्रवर्तन निदेशालय (ED) का मुख्यालय है. पत्रकारों के सवालों, मीडिया कैमरे के फ्लैश के बीच बिजनेसमैन रॉबर्ट वाड्रा ने खुद को बेकसूर बताया और कहा कि, ‘यह कुछ और नहीं बल्कि राजनीतिक प्रतिशोध है. जब भी मैं अल्पसंख्यकों के लिए बोलता हूं तो वे मुझे रोकने की कोशिश करते हैं, हमें कुचलने की कोशिश करते हैं. उन्होंने संसद में राहुल (गांधी) को भी रोकने की कोशिश की. यह एजेंसियों का दुरुपयोग है और यह राजनीतिक प्रतिशोध है।
वाड्रा ने कहा कि वे जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करेंगे उन्होंने पहले भी ऐसा किया है. बता दें कि वाड्रा को पहले इस मामले में पूछताछ के लिए 8 अप्रैल को बुलाया गया था. लेकिन वाड्रा उस तारीख को हाजिर नहीं हो पाए थे और उन्होंने नए तारीख की मांग की थी। आइए समझते हैं कि ये मामला है क्या और कितने सालों से चला आ रहा है?
ये बात 2008 की है. तब हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री थे।
फरवरी 2008 में ही रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड ने गुरुग्राम के शिकोहपुर गांव (सेक्टर 83) में 3.5 एकड़ जमीन ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से खरीदी थी. ये डील 7.5 करोड़ रुपये में हुई थी।
आरोप है कि इस जमीन का म्यूटेशन घंटों में ही पूरा करवा लिया गया था. इसके बाद, मार्च 2008 में, हरियाणा सरकार ने स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी को इस जमीन पर व्यावसायिक कॉलोनी विकसित करने का लाइसेंस (लेटर ऑफ इंटेंट) जारी किया. गौरतलब है कि उस समय हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री तो थे ही इसके अलावा उनके पास नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग (Town and County Planning Department) भी था।
बाद में स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने हुड्डा के प्रभाव से कॉलोनी के विकास के लिए कमर्शियल लाइसेंस हासिल करने के बाद इस जमीन को जून 2008 में 58 करोड़ रुपये की कीमत पर डीएलएफ यूनिवर्सल लिमिटेड को बेच दिया।
50 करोड़ मुनाफा कमाने का आरोप
इस मामले में शिकायतकर्ता सुरिंदर शर्मा ने एफआईआर में आरोप लगाया कि इस तरह वाड्रा की कंपनी ने करीब 50 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। हरियाणा पुलिस ने 2018 में इस मामले में एक केस दर्ज किया था. गौरतलब 2014 में हरियाणा में सत्ता परिवर्तन हो चुका था और मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री बने थे।
सितंबर 2018 में, गुरुग्राम के खेड़की दौला पुलिस स्टेशन में वाड्रा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, डीएलएफ, और ऑनकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खिलाफ एक FIR दर्ज की गई थी. नूह के रहने वाले शिकायतकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र शर्मा ने आरोप लगाया कि इस सौदे में आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार हुआ।
आरोप है कि इस सौदे में अनियमितताएं हुईं. इसमें हरियाणा की तत्कालीन कांग्रेस सरकार (मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में) ने वाड्रा को अनुचित लाभ पहुंचाया. यह सौदा उस समय हुआ जब हुड्डा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग का पोर्टफोलियो भी संभाल रहे थे।
शिकायतकर्ता सुरिंदर शर्मा ने आगे दावा किया कि इसके बदले में राज्य सरकार ने नियमों का उल्लंघन करते हुए गुड़गांव के वजीराबाद में डीएलएफ को 350 एकड़ जमीन आवंटित की. उन्होंने आरोप लगाया कि इस डील में डीएलएफ ने 5,000 करोड़ रुपये कमाए. शर्मा के अनुसार ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज को भुगतान चेक के माध्यम से किया गया था. हालांकि ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज ने कभी चेक जमा नहीं किया. इससे संकेत मिलता है कि यह एक शेल कंपनी थी. सुरिंदर शर्मा ने FIR में ये दावा किया है।
इस मामले में पुलिस ने वाड्रा और हुड्डा के खिलाफ IPC की धारा 420 (धोखाधड़ी), 120B (आपराधिक साजिश), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज को असली के रूप में उपयोग), और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 के तहत मामला दर्ज किया।
वर्ष 2015 में हरियाणा की बीजेपी सरकार ने हुड्डा सरकार के दौरान हुए “संदिग्ध” जमीन सौदों की जांच के लिए जस्टिस एस.एन. ढींगरा आयोग का गठन किया था. इस आयोग ने शिखोपुर समेत गुरुग्राम के चार गांवों (सिही, खेड़की दौला, सिकंदरपुर बड़ा) में लाइसेंस आवंटन की जांच की। हालांकि आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया क्योंकि हुड्डा ने इसे अदालत में चुनौती दी थी।
रद्द की थी IAS अशोक खेमका ने म्यूटेशन
2013 में छपी टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 2012 में हरियाणा के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने इस सौदे में अनियमितताओं का हवाला देते हुए स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी और डीएलएफ के बीच जमीन के म्यूटेशन (हस्तांतरण) को रद्द कर दिया था. गौरतलब है कि खेमका उस लैंड रिकॉर्ड विभाग से जुड़े थे. खेमका ने इस मामले की जांच के लिए बनी एस एन ढींगरा आयोग के सामने कहा था कि इस सौदे को सही दिखाने के लिए वाड्रा ने कई फर्जी सौदे किए थे।
तीन सदस्यीय जांच कमीशन के सामने अपना जवाब देने वाले आईएएस अशोक खेमका ने दावा किया था कि 12 फरवरी, 2008 का सेल डीड जिसके माध्यम से वाड्रा की कंपनी ‘स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी’ ने ‘ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज’ से जमीन खरीदी और मार्च 2008 में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग द्वारा उनकी कंपनी को कमर्शियल लाइसेंस देने के लिए जारी किया गया आशय पत्र, दोनों ही “नकली लेन-देन” हैं।
बाद में खेमका ने वाड्रा और डीएलएफ के बीच इस लैंड डील को रद्द कर दिया था. खेमका के इस कदम के बाद उनका ट्रांसफर कर दिया गया था. जिससे यह मामला और भी विवादास्पद हो गया।