भूमि अधिग्रहण संघर्ष समिति के गिरफ्तार कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा किया जाए: डीटीएफ

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डीटीएफ ने बेगमपुरा को बसाने के लिए निकले सैकड़ों मजदूरों की गिरफ्तारी की निंदा की
पंजाब सरकार मजदूरों के लोकतांत्रिक संघर्षों को बलपूर्वक कुचलने की राह पर है: डीटीएफ
गढ़शंकर, 23 मई :  डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (डीटीएफ) पंजाब की राज्य कमेटी ने बेगमपुरा को बसाने के लिए संगरूर शहर के निकट जींद रियासत की 927 एकड़ भूमि पर पहुंच रहे भूमिहीन मजदूरों के लोकतांत्रिक विरोध को छह जिलों की पुलिस द्वारा जबरन रोकने, सैकड़ों कार्यकर्ताओं और नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेजने की कड़ी निंदा की है और सभी गिरफ्तार मजदूरों की तुरंत बिना शर्त रिहाई की मांग की है।
डीटीएफ के राज्य संयुक्त सचिव मुकेश कुमार, जिला अध्यक्ष सुखदेव डानसीवाल, सचिव इंद्रसुखदीप सिंह ओदरा, वित्त सचिव मनजीत सिंह दसूहा, जिला नेता बलजीत सिंह, अशनी कुमार, निर्मल सिंह, बलजिंदर सिंह व मनजीत सिंह बंगा ने कहा कि भारत के संविधान के अनुसार पंजाब में 17.5 एकड़ (किले) से अधिक स्वामित्व वाली भूमि को भूमि हदबंदी अधिनियम के तहत भूमिहीन लोगों में वितरित किया जाना है। इस मांग को लेकर समाज में सबसे अधिक प्रभावित लोगों में शामिल भूमिहीन मजदूर पिछले काफी समय से बीड़ असवां के बेचिराग गांव, जो कभी जींद के राजा की रियासत का हिस्सा था, की 927 एकड़ जमीन को भूमिहीन लोगों में वितरित करने की मुहिम चला रहे हैं। लेकिन पंजाब की भगवंत मान सरकार को यह स्वीकार नहीं है कि भूमिहीन मजदूर अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग करते हैं, इसलिए पंजाब सरकार पुलिस बल के माध्यम से इन लोगों के इस लोकतांत्रिक संघर्ष को कुचलने की राह पर है। इसके तहत मालवा के विभिन्न शहरों में लगभग 100 महिलाओं सहित 300 से अधिक मजदूरों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया है। डीटीएफ नेताओं ने कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार के बाद पंजाब सरकार बुरी तरह बौखला गई है और 20 मई को बेगमपुरा को बसाने के लिए बीड़ असवान (संगरूर) जा रहे जत्थों को पुलिस ने बैरियर लगाकर रोक लिया, उनके साथ मारपीट की और महिलाओं समेत सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर यह दिखा दिया है कि किसानों के बाद अब आप सरकार भूमिहीन लोगों के संघर्ष को भी बलपूर्वक कुचलने की राह पर चल पड़ी है। नेताओं ने आगे कहा कि सदियों से दबे-कुचले, दलित और भूमिहीन लोगों की आवाज उठाने वाले भूमि अधिग्रहण संघर्ष कमेटी के नेताओं को दबाना पंजाब सरकार के दलित-विरोधी, मजदूर-विरोधी चेहरे को उजागर करता है, जिसकी कीमत सरकार को आने वाले समय में चुकानी पड़ेगी।

 

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