होशियारपुर, 17 मार्च: प्रमोटिंग रिजेनरेटिव नो-बर्न एग्रीकल्चर (प्राना) प्रोजेक्ट किसानों को फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए बेहतर तरीके अपनाने में मदद करता है, जिसमें नो-बर्न को बढ़ावा देने, मिट्टी की संरचना में सुधार करने और मिट्टी में कार्बन बढ़ाने के अलावा बिना जुताई और रिजेनरेटिव कृषि प्रथाओं का उपयोग करना शामिल है।
पंजाब में किसान मेलों के दौरान किसानों को टिकाऊ खेती के तरीके सीखने में मदद करने के लिए प्राना के तहत इंटरैक्टिव विज़ुअल टूल का उपयोग किया जाता है।
प्राना प्रोजेक्ट को नेचर कंजर्वेंसी इंडिया सॉल्यूशंस (एनसीआईएस) द्वारा सपोर्ट किया जा रहा है और इसमें रिवाइविंग ग्रीन रिवोल्यूशन सेल और मानव विकास संस्थान इम्प्लीमेंटेशन पार्टनर हैं, और वर्टीवर बिहेवियर चेंज और कम्युनिकेशन पार्टनर हैं।
एनसीआईएस के फतेह वीर सिंह गुरम बताते हैं कि कृषि में मिट्टी को पुनर्जीवित करने, पर्यावरण की रक्षा करने के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य को बढ़ाने की क्षमता है। हम यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारा कार्यक्रम पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों के बारे में जागरूकता पैदा करके पंजाब में कृषि पद्धतियों पर स्थायी प्रभाव डाले।
किसानों के बीच ज्ञान पैदा करने के लिए नाटक, इनोवेटिव गेम जैसे एजुकेशनल प्लेइंग कार्ड , सांप और सीढ़ी और डार्टबोर्ड गेम जैसे कई तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
थिएटर कलाकारों को रिजेनरेटिव कृषि पर नाटक खेलने के लिए प्रशिक्षित किया गया है जिसमें कीटनाशकों, उर्वरकों और पानी के अत्यधिक उपयोग और मोनो-क्रॉपिंग के प्रतिकूल प्रभावों को किसान मेलों के दौरान एक नाटक में दर्शाया जाता है।
वर्टीवर की सीईओ छाया बांती ने कहा, “रिजेनरेटिव कृषि की ओर बढ़ना किसानों की क्लाइमेट रेसिलिएंस के प्रति बिल्ड करना है और हम इस जानकारी को इंटरैक्टिव टूल में अनुवाद कर रहे हैं ताकि किसान उन प्रथाओं को समझ सकें और अपना सकें जो मिट्टी, पर्यावरण और फसल को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं।
डार्टबोर्ड गेम में ऐसे खंड होते हैं जिनमें अन्सस्टेनबल प्रैक्टिस को ‘रेड’ के रूप में पहचाना जाता है जैसे अवशेष (पराली) जलाना, एक ही फसल को बार-बार बोना, पानी और उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग। कुछ
सस्टेनेबल (ग्रीन) प्रैक्टिस में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के दिशानिर्देशों के फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मशीनों का उपयोग, पानी और उर्वरकों का इष्टतम उपयोग शामिल है।
किसानों को ‘सुच्चजी खेती’ कार्ड और ‘अच्छी और बुरी प्रथाएँ’ डार्टबोर्ड गेम जैसे गेमिफाइड शिक्षण उपकरणों के साथ बातचीत करने का भी मौका मिलता है , जिन्हें वैज्ञानिक ज्ञान के साथ किसानों को खेती की प्रथाओं के बारे में सिखाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। सुच्चाजी खेती प्लेइंग कार्ड 52 अलग-अलग रिजेनरेटिव कृषि संदेशों को प्रदर्शित करते हैं जो हाथ से बनाए गए चित्रों के साथ सपोर्टेड हैं जिन्हें इन कार्डों के साथ खेलते समय किसानों द्वारा देखा और पढ़ा जा सकता है।कपूरथला जिले के कांजली गांव के सरपंच कसबीर सिंह ने बताया कि किसानों तक महत्वपूर्ण कृषि-संदेश पहुंचाने का यह एक बहुत ही रचनात्मक तरीका है।इस बीच, इन इनोवेटिव गेम को लॉन्च करने से पहले, प्राना के कृषि-वैज्ञानिकों, कृषिविदों, संचार पेशेवरों और शोधकर्ताओं ने रिजेनरेटिव कृषि प्रथाओं पर ज्ञान अंतराल का आकलन करने के लिए पंजाब के 18 जिलों में 400 से अधिक किसानों के साथ बातचीत की।
साँप-सीढ़ी गेम को स्कूलों में भी शुरू किया गया था जहाँ बच्चे, ज्यादातर किसान परिवारों से, सस्टेनेबल (टिकाऊ) और ग्रीन प्रैक्टिस के बारे में सीखते थे।