कोरोना का उपहार

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होशियारपुर : बैठक से ठहाकों की आवाज आ रही थी,” भाई साहब नेहा ने जो शलगम का अचार बनाया। उंगलियां ही चाटते रह गए हम तो आज,”।
नेहा के सास शीला ने कहा,” हमारा अभिषेक शलगम खाता तो दूर सूंघता भी नहीं था”। लेकिन आज उसने एक चपाती ज्यादा खाई । अभिषेक की बड़ी बहन रश्मि ने भी शीला की बात की पुष्टि की।
अरे भाई मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली तीस लाख का पैकेज लेने वाली एक आधुनिक लड़की, क्या कभी घरेलू कामकाज में भी निपुण हो सकती है? यह कभी हमने स्वप्न में भी नहीं सोचा था ।भाई ,हमारे तो भाग्य खुल गए अभिषेक के पापा दीपक ने गर्व से कहा.

मैं रसोई घर में खड़ी यह बातें सुनकर फूली नहीं समा रही थी। ससुराल वाले बेटी की तारीफ करें, इससे बढ़कर एक मां के लिए और क्या खुशी हो सकती है? लेकिन यदि वह घटना घटी ना होती तो क्या मेरी बेटी की यही तारीफ सुनने को मिलती? या शिकायतें सुनने को मिलती ? नहीं नहीं नहीं ! मेरी रूह अंदर तक कांप गई फिर मैं अपने अतीत में चली गई। नेहा मेरी प्यारी इकलौती बेटी शादी के 5 साल बाद जब मेरी झोली में आई तो जैसे मुझे जन्नत ही मिल गई । घर में खुशियां महकने लगी, हर एक के चेहरे पर मुस्कान थी। नेहा की दादी ने खुश होकर सारे गांव में मिठाई बांटी। नेहा के पापा तो जैसे बिना पैरों के ही उड़ रहे थे। यह समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। नेहा जब 3 साल की हुई तो उसमें इतने गुण थे कि वह फराटेदार अंग्रेजी बोलने लगी थी । सारी किताबें एकदम से याद कर लेती और जब वह दसवीं कक्षा में थी तब वह पूरे जिले में ही नहीं पूरे पंजाब में उसका दूसरा स्थान आया था।
पढ़ाई के साथ-साथ वह अपने हर काम में निपुण थी ।वह बहुत अच्छा गा लेती थी, एक्टिंग तो उसके रग-रग में बसी थी ,कोई भी स्कूल का समारोह नेहा के बिना अधूरा था ।इसलिए नेहा हर एक के दिल की धड़कन थी, हर कोई उसको चाहता था। उसके अध्यापक , मुख्याध्यापक आदि। उसके घर में उसके दादा-दादी बुआ सब की वह जान थी । जब किसी में इतने सारे गुण आ जाए तो वह शख्स थोड़ा सा हवाओं में उड़ने लगता है ,यही असर नेहा पर भी हुआ। वह थोड़ी सी अभिमानी ,जिद्दी हो गई । उसको हमेशा ही लगता था कि मैं ही बेस्ट हूं । लेकिन एक बात थी जो अक्सर मुझे उसकी खटकती थी कि नेहा कभी भी घर के काम में कोई भी रुचि नहीं दिखाती थी, जब कभी मैं उसे घर के कामकाज में रुचि लेने के लिए कहती थी, कि बेटे कुछ घर के काम ही सीख लो, पति के दिल तक पहुंचने के लिए पेट के रास्ते से होकर जाना पड़ता है, तो टेबल टेनिस में सोने का तमगा लेने वाली नेहा मुझे आलिंगन में भरकर खिलखिला कर हंसने लगती और मुझसे अंग्रेजी में कहती ,”माय डियर मॉम ! यू आर ग्रेट ,यह हाथ लैपटॉप पर चलाने के लिए बने हैं , ट्रोफिस लेने के लिए बने हैं ना कि बेलन चलाने के लिए।” उस की तरफदारी उसके पापा मनीष भी कर देते । “यूं ही मेरी बेटी के पीछे मत पढ़ा करो सरिता, मैं अपनी बेटी के दहेज में एक दर्जन नौकर दे दूंगा, फिर उसको क्या जरूरत है ; यह काम धंधे करने की।” दादा-दादी सभी नेहा की टीम में शामिल हो जाते और मैं बेचारी निरुत्तर होकर रह जाती । अब नेहा 27 वर्ष की हो चुकी थी, पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और उसको एक बहुत अच्छी नौकरी मिल गई थी । रिश्तों की लाइन लग गई उसके लिए , लेकिन उसने अपने मनपसंद अपने बचपन के साथी अभिषेक जो कि मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखता था को ही पसंद किया। देखते ही देखते नेहा की शादी की तारीख निश्चित हो गई और सब कुछ इतनी जल्दी हो गया। पता ही नहीं चला । बस 2 महीने ही बचे थे। नेहा की शादी को। खरीदारी ,शादी ,मंडप, कार्ड खाने का इंतजाम, स्वागत, रिश्तेदारों को बुलाना, ना जाने कितने ही काम थे। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मेरे पति ने मुझे समझाया, व दिलासा दिया कि सब हो जाएगा, जेब में जब पैसा हो तो सब कुछ हो जाता है। लेकिन मेरे मन की व्यथा को मेरे पति नहीं समझ सकते थे। कई बार जेब में पैसों से भी वह काम नहीं हो सकता। नेहा को तो सिर्फ चाय और मैगी बनाने के सिवा और कुछ नहीं आता था। कैसे संभालेगी कि वह अपनी गृहस्थी ? होटल ,जोमैटो, स्विग्गी से रोज तो खाया नहीं जा सकता ना। अभिषेक वैसे भी मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखता है ।उनके घर में नौकर और काम तो करते देखे हैं, पर खाना अभिषेक की मां और दादी ही बनाती थी । कही मेरी बहुत ही गुणों वाली बेटी की गृहस्थी को किसी की नजर न लग जाए । मेरा दिल किसी अनजान आने वाले तूफान से डर रहा था। एक महीने शॉपिंग करते कैसे बीत गया मुझे पता ही नहीं चला। सुबह से ही मेरे बदन में दर्द हो रहा था तथा गले में भी खराबी थी, इस कोरोना महामारी के दौर में मन में ढेरों सवाल खड़े हो गए। फिर टेस्ट करवाया जिसका डर था वहीं बात हो गई। मैं कोरोना पॉजिटिव हो गई थी। घर के नौकरों को भी छुट्टी दे दी गई थी। मैं ऊपर वाले कमरे में एकांतवास में आ गई ।मैंने नेहा को समझाया,” कि बेटा, जैसे भी हो रसोई अब तुम्हारी जिम्मेदारी है ,घर में बुजुर्ग दादा-दादी है , सबको अब तूने ही देखना है।” ना चाहते हुए भी नेहा रसोई का काम करने लगी। मैं वीडियो कॉल करके उसको सब्जी बनाने की विधि समझाने लगी। कुछ यूट्यूब से और कुछ मेरे बताने से नेहा ने पहले दिन सूखे आलू बनाए । जो सब ने बहुत ही पसंद लिए। नेहा जो भी सब्जी बनाती चाहे वो अच्छी बनती या ना बनती ,घर का हर एक सदस्य उसकी बहुत ही तारीफ करता था। जिससे कि उसका आत्मविश्वास बढ़ गया था ।इन 14 दिनों में ना केवल उसने सब्जियां बनाई बल्कि इडली ,डोसा, सांभर पोहा, ढोकला आदि भी बनाया डाला। अब उसको खाना बनाने में भी रूचि होने लगी थी। “मम्मी एक कटोरी दाल और पालक बची है क्या उसको फेंक दूं ?” ” ना ना मेरी बेटी अन्न का निरादर होता है। कभी भी गृहणी को कोई भी चीज फैंकीनी नहीं चाहिए ,चलो ऐसा करो उसमें सुखा आटा मिला दो, थोड़ा प्याज काट कर, थोड़ा धनिया डालकर, हरी मिर्च काटकर ,उसका आटा गूंथ लो और इसके पराठे बना लो।” जब नेहा ने वह पराठे खाए तो बोली,” मम्मी इतने ज्यादा स्वादिष्ट पराठे, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि यह पराठे मैंने बनाए है ?” अब नेहा को खाना बनाने की रूचि होने लगी थी और उसका आत्मविश्वास भी बढ़ गया था । एक दिन उसका फोन आया,” मम्मी फ्रिज में बहुत सारी मलाई इक्ट्ठी हो रखी है ।” मेरे बार-बार मना करने पर भी उसने यूट्यूब से मक्खन बनाने की विधि से ढेर सारा मक्खन निकाल डाला ।आज जब मैं 14 दिनों के एकांतवास से बाहर आई तो मुझे लगा कोरोना ने मुझे मेरी गुणवती सयानी बेटी के रूप में उपहार दिया है। आज जो मैं बैठक में बातें सुन रही हूं और जो उसकी तारीफ सुन रही हूं ,यह सब सुनकर मेरी आंखों में खुशी के आंसू आ गए। शायद नेहा मेरे चेहरे के हावभाव देख रही थी। वह मुझसे लिपटकर कहने लगी,” मॉम आज मैं जो भी हूं, वह आपकी ही वजह से हूं।” मैंने कहा,” नहीं नहीं !मेरी वजह से नहीं कोरोना की वजह से ।”और हम दोनों खिलखिला कर हंसने लगी।

प्रिंसिपल ललिता अरोड़ा
सरकारी कन्या सेकेंडरी स्मार्ट स्कूल रेलवे मंडी होशियारपुर।
9814887900

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