अमेठी में राहुल गांधी की हार ने कांग्रेस को काफी गहरे जख्म दिए तो स्मृति ईरानी का सियासी कद काफी बढ़ा. 2024 के चुनाव में कांग्रेस ने आखिरी समय पर अपने पत्ते खोले। राहुल गांधी और गांधी परिवार से किसी के उतरने के बजाय अमेठी सीट से किशोरी लाल शर्मा को उतारा गया। राहुल गांधी को हराकर सियासी इतिहास रचने वाली स्मृति ईरानी इस बार गांधी परिवार के सियासी ‘प्यादे’ से हार गई।
उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट पर सभी की निगाहें लगी थीं, क्योंकि राहुल गांधी को हराने वाली स्मृति ईरानी यहां से तीसरी बार चुनाव लड़ रही थीं। 2014 से स्मृति ईरानी अमेठी सीट से चुनाव लड़ रही हैं। वे पहली सियासी बाजी भले ही हार गई थीं, लेकिन पांच साल के बाद 2019 में अमेठी सीट पर उनके सिर गांधी परिवार का किला भेदने का सेहरा बंधा था।
राहुल के लड़ने की थी उम्मीद : अमेठी सीट से गांधी परिवार के करीबी रहे किशोरी लाल शर्मा की उम्मीदवारी के ऐलान से पहले तक कई हलकों में ये उम्मीद की जा रही थी कि राहुल गांधी अमेठी से एक बार फिर चुनाव लड़ सकते हैं। कांग्रेस ने रायबरेली और अमेठी सीट पर आखिरी समय में अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया। अमेठी के बजाय राहुल गांधी को कांग्रेस ने इस बार रायबरेली सीट से उतारा और अमेठी से किशोरी लाल शर्मा पर दांव खेला. केएल शर्मा रायबरेली में सोनिया गांधी के प्रतिनिधि के तौर पर काम देख रहे थे।
किशोरी लाल शर्मा की उम्मीदवारी का ऐलान हुआ तो कहा जाने लगा कि कांग्रेस ने क्या स्मृति ईरानी को अमेठी सीट पर वॉकओवर दे दिया है। स्मृति ईरानी ने भी उन्हें गांधी परिवार का स्टेनो कह कर संबोधित किया था. हालांकि, किशोरी लाल शर्मा ने स्मृति ईरानी को चुनाव हराकर हिसाब बराबर कर लिया. कांग्रेस के किशोरी लाल ने स्मृति ईरानी को एक लाख 67 हजार 196 मतों के बड़े अंतर से हराया है। अमेठी में सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती शुरू हुई वही से कांग्रेस प्रत्याशी किशोरी लाल शर्मा ने बढ़त बना ली और लगातार बढ़त बनाए रही. हर राउंड में किशोरी आगे बढ़ते गए और ये सिलसिला रुका ही नहीं और स्मृति ईरानी लगातार पीछे होती चली गईं।
हार की प्रमुख वजह : स्मृति ईरानी की हार की सबसे बड़ी वजह यह रही कि पांच साल तक सांसद रहते हुए गांधी परिवार के द्वारा अमेठी क्षेत्र में कराए गए विकास कार्य की लकीर को पीछे नहीं छोड़ सकीं। गांधी परिवार ने अमेठी और रायबरेली क्षेत्र में काफी विकास कार्य कराए हैं। ऐसे में स्मृति ईरानी 2019 में राहुल गांधी को हराकर अमेठी से सांसद चुनी गईं तो क्षेत्र के लोग उनसे भी कांग्रेस के द्वारा कराए विकास की अपेक्षा करने लगे। अमेठी ऐसी सीट है, जहां से संजय गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी सांसद रहे हैं। गांधी परिवार ने अमेठी सीट का प्रतिनिधित्व करने के दौरान काफी विकास के कार्य कराए हैं। ऐसे में अमेठी सीट देश के अन्य सीटों की तरह नहीं है, जहां से एक लोकसभा के सांसद के तौर पर चुनाव जीत लिया जाए। स्मृति ईरानी 2019 में सांसद चुनी गईं तो अमेठी के लोगों ने विकास कार्यों की उम्मीदें पाल रखी थीं. पांच साल में कोई बड़ा न कारखाना अमेठी में लगा और न ही कोई बड़ा प्रोजेक्ट आया। यूपीए सरकार के दौरान आए कई बड़े प्रोजेक्ट वापस चले गए, जिसका खामियाजा स्मृति ईरानी को चुनाव में उठाना पड़ा है।
स्मृति का प्रबंधन व जन विरोधी फैसले : केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की चुनावी हार की बड़ी वजह अमेठी में उनके कोर टीम के सदस्य बने हैं. राजेश अग्रवाल , अमरेंद्र सिंह पिंटू, चंद्र प्रकाश मटियारी और विजय गुप्ता ये ऐसे नाम है, जो स्मृति ईरानी का अमेठी में सारा कामधाम देखते थे। विजय गुप्ता केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के निजी सचिव हैं, जो अमेठी में पूरा दखल देते थे. अमेठी के लोगों को स्मृति ईरानी से मिलाने से लेकर काम कराने का सारा दमोदार उन्हीं पर था। गायत्री प्रजापति के साथ रहने वाले अमरेंद्र सिंह भी स्मृति के कोर टीम का हिस्सा हो गए थे। जिनकी छवि बहुत अच्छी नहीं मानी जाती है। स्मृति ईरानी के सांसद रहते हुए उनके करीबियों ने अमेठी की स्थानीय राजनीति में दखल देना शुरू कर दिया, जिसके चलते हर गांव में दो पार्टियां तैयार हो गई थीं।
अमेठी की स्थानीय राजनीति में स्मृति ईरानी के करीबी नेताओं के हस्तक्षेप से बीजेपी के नेता-कार्यकर्ता भी खुश नहीं थे। इसी का नतीजा है कि स्मृति के सांसद बनने के बाद से बीजेपी का सियासी आधार अमेठी में कमजोर हुआ, जिसका खामियाजा 2022 के चुनाव, फिर निकाय चुनाव और अब लोकसभा चुनाव में उन्हें उठाना पड़ गया। इतना ही नहीं अमेठी के मुंशीगंज स्थित संजय गांधी अस्पताल को बंद कराने का आरोप भी स्मृति ईरानी पर लगा है। इस क्षेत्र में इलाज के लिए सबसे बड़ा अस्पताल था, जिसके बंद होने से इलाज के लिए क्षेत्र के लोगों को लखनऊ जाने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा था। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया और स्मृति ईरानी के लिए लोकसभा चुनाव में महंगा पड़ा।
अमेठी की इमोशनल अपील : अमेठी के लोगों ने 2019 में राहुल गांधी को हराकर स्मृति ईरानी को जिता दिया था, लेकिन पांच साल पछताते रहे। इसके पीछे वजह यह थी कि अमेठी के लोगों का गांधी परिवार के साथ भावनात्मक रिश्ता है। ऐसे में राहुल गांधी की हार से अमेठी के लोगों के अंदर मलाल जैसा भाव था। स्मृति ईरानी उसे खत्म करने की बजाय सड़क से लेकर संसद तक राहुल गांधी और गांधी परिवार पर निशाना साधती रहीं। अमेठी के लोगों के इमोशन को स्मृति ईरानी समझ नहीं सकीं और अपने गांधी परिवार को निशाने पर लेती रहीं। इसके अलावा पांच साल अमेठी का प्रतिनिधित्व करते हुए स्मृति ईरानी का जिस तरह से तेवर और मिजाज था, वो अमेठी के लोगों को रास नहीं आया, जिसकी वजह से उन्हें सियासी नुकसान उठाना पड़ा है। कांग्रेस ने इस बार किशोरी लाल शर्मा को प्रत्याशी बनाकर स्मृति ईरानी को राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने का प्रिविलेज नहीं दिया। केएल शर्मा की व्यक्तिगत छवि देखें तो कभी मिलनसार है और किसी भी बात पर नाराज नहीं होते हैं।
स्मृति ईरानी का ओवर कॉन्फिडेंस : स्मृति ईरानी इस बार किशोरी लाल शर्मा के उतरने के बाद ओवर कॉन्फिडेंस में थी। उन्हें यह लगने लगा था कि राहुल गांधी को हरा चुकी हैं तो किशोरी लाल शर्मा क्या हैं. इसीलिए शर्मा को उन्होंने गांधी परिवार का स्टेनो तक कह दिया था। स्मृति ईरानी का ओवर कॉन्फिडेंस में होने चलते अमेठी की जमीनी स्थिति को समझ नहीं सकीं। 2024 का लोकसभा चुनाव में यही उन्हें महंगा पड़ा। अमेठी के लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली सभी 5 विधानसभा क्षेत्रों में उन्हें मात खानी पड़ी। सपा से बागी विधायक राकेश प्रताप सिंह और महाराजी देवी को मिलाने का भी सियासी फायदा अमेठी में नहीं मिल सका। केएल शर्मा अमेठी में 40 साल कांग्रेस का चुनावी प्रबंधन देखते रहे हैं, जिसके चलते उन्हें एक-एक गांव और क्षेत्र की राजनीतिक मिजाज से भी वाकिफ हैं। स्मृति के खिलाफ वो इसी बात को भुनाने का काम किया, जिसका चुनावी लाभ मिला।
यूपी में ही अमेठी लोकसभा सीट : अमेठी में स्मृति ईरानी की हार की वजह वही रही, जो यूपी में बाकी सीटों पर रहा. सपा-कांग्रेस के गठबंधन का नुकसान स्मृति ईरानी को उठाना पड़ा है, क्योंकि सपा का अपना सियासी आधार और संगठन स्थानीय स्तर पर कांग्रेस से ज्यादा मजबूत है। सपा के लोग पूरी दमदारी के साथ केएल शर्मा को चुनाव लड़ाते हुए नजर आए। इसके अलावा सपा का पीडीए फॉर्मूला भी काफी सफल रहा तो राहुल गांधी का संविधान और आरक्षण वाला दांव भी काम आया। केएल शर्मा ब्राह्मण समुदाय से होने के चलते सवर्णों का वोट मिला और कांग्रेस द्वारा जातिगत जनगणना के मुद्दे के उठाने पर पिछड़ी जातियों से भी फायदा मिला। संविधान बचाने वाले मुद्दे से दलित समुदाय का बड़ा तबका कांग्रेस के पक्ष में गया. इस तरह स्मृति ईरानी ने जिस सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अमेठी का दुर्ग भेदा था। उसे इस बार कांग्रेस ने अपने साथ करने में कामयाब रहा। सपा-कांग्रेस गठबंधन के चलते यादव और मुस्लिम समुदाय का वोट एकमुश्त केएल शर्मा को मिला।