एएम नाथ। शिमला : हिमाचल प्रदेश में विकास की गाड़ी बिना कर्ज आगे नहीं बढ़ सकती। प्रदेश के हालात ऐसे हैं कि यहां कर्मचारियों का वेतन और रिटायर्ड कर्मचारियों के पेंशन देने के लिए भी राज्य सरकार को कर्ज पर ही निर्भर रहना पड़ता है। हिमाचल प्रदेश की सत्ता पर चाहे जिस भी पार्टी की सरकार हो, हर सरकार को लोन लेकर ही आगे बढ़ना होता है। बावजूद इसके लोन के मुद्दे पर राज्य में हमेशा ही राजनीति गरमाई रहती है। अब कर्ज के मुद्दे को लेकर एक बार फिर राजनीति गरमा गई है।
हिमाचल पर करीब 85 हजार करोड़ रुपये का कर्ज : छोटे से पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश पर करीब 85 हजार करोड़ रुपये का कर्ज हो चुका है। वित्त वर्ष 2024-25 में अब तक राज्य सरकार 3 हजार 400 करोड़ रुपये का लोन ले चुकी है। राज्य सरकार के पास अप्रैल महीने से दिसंबर महीने तक की अवधि में छह हजार करोड़ रुपये की लोन लिमिट है। दिसंबर से मार्च तक तिमाही के लिए केंद्र सरकार की ओर से एक अलग लोन लिमिट सैंक्शन होगी. दिसंबर महीने तक राज्य सरकार 2 हजार 600 करोड़ रुपये का लोन ले सकती है।
वेतन पर ही सालाना 20 हजार 639 करोड़ रुपये खर्च : वित्त वर्ष 2026-27 में राज्य सरकार को कर्मचारियों के वेतन पर ही सालाना 20 हजार 639 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. इससे भी बढ़कर चिंता की बात यह है कि वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद राज्य सरकार के सिर पर आई एरियर की लायबिलिटी आउट ऑफ कंट्रोल होती चली जाएगी। बीते दिनों हिमाचल के दौरे पर आए सोलहवें वित्त आयोग के समक्ष राज्य सरकार ने इससे जुड़े तथ्य भी रखे हैं।