एएम नाथ। चम्बा (पांगी) : हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र पांगी में आज भी प्राचीन परंपराएं जिंदा हैं। दुर्गम क्षेत्र पांगी के लोग एक माह तक जुकारू पर्व मनाते हैं।शुक्रवार यानी कल विधिवत रूप से पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए इस उत्सव की शुरूआत की जाएगी। लंबे समय से जुकारू उत्सव को मनाने की परंपरा पांगी घाटी के अलावा बाहरी राज्यों और प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में बसे पांगी घाटी के लोगों में खासा उत्साह रहता है।
घाटी में मौसम के खुलने के बाद लोग एक-दूसरे के घरों में जाकर उनका कुशलक्षेम पूछते हैं। शुक्रवार को सिलह उत्सव के साथ घाटी के लोग सुबह चार बजे घर के नजदीक के प्राकृतिक जल स्रोत से पानी भरेंगे और परिवार के सदस्यों के साथ पूजा-अर्चना करेंगे। उत्सव की तैयारियां के रूप में घरों को लिपाई-पुताई का कार्य करते हैं, साथ ही बलि राज के चित्र अपने घरों में बनाते हैं। जुकारू का त्योहार समूची पांगी घाटी में एक जैसा मनाया जाता है।
इस त्योहार को घाटी की शान और प्राण मानना अतिशयोक्ति नहीं होगा। इसी त्योहार पर घाटी की परम्परा कायम है। जुकारू को तीन चरणों में मनाया जाता है। कई दिन पहले से लोग इसकी तैयारियां शुरू कर देते हैं घरों को सजाया जाता है। घर के अन्दर लिखावट के माध्यम से लोक शैली में अल्पनाएं रेखांकित की जाती हैं। पकवान विशेष मण्डे पकाए जाते हैं तथा अन्य सामान्य पकवान भी बनाए जाते हैं। सिल्ह की शाम को घर के मुखिया द्वारा भरेस (भंगड़ी) और आटे के बकरे बनाए जाते हैं। बकरे बनाते समय कोई भी किसी से बातचीत नहीं करता है। पूजा की सामग्री को एक अलग कमरे में ही रखा जाता है। रात्रिभोज के उपरांत गोवर की लिपाई जिसे चीका कहते हैं, की जाती है। गोमूत्र और गंगा जल छिड़का जाता है। गेहूं के आटे या जौ के सत्तुओं से मण्डप लिखा जाता है।