द्रुतगामी परिवर्तनों तथा बहु संख्यक उपलब्धियों सहित आज के समय में विज्ञान और तकनीक के आश्रय मानव समुदाय भूमंडलीकरण के दौर में प्रवेश कर रहा है। स्थलीय और भौगोलिक परिधियां, परिस्थितियाँ समाप्त हो रही हैं। प्रारंभ में जहां तक कि वेदों ग्रंथों से ही बात करें तो देवनागरी लिपि ने भारतीय संस्कृति के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 70 के दशक में हिंदी जब अंग्रेजी हटाओ की मांग करने वाली भाषा थी आज वही हिंग्लिश बनाकर ग्लोबल पीढ़ी के उन्मुक्त संवाद की भाषा है। वह सोशल मीडिया के तुरंत कनेक्ट की, चैट की भाषा बन गई है। स्लो मोशन वाली हिंदी अब फास्ट एंड फॉरवार्ड कम्युनिकेशन की भाषा है। ग्लोबल कनेक्टिविटी का खिताब इसी हिंदी को मिला है। 14 सितंबर राष्ट्रीय हिंदी दिवस,10 जनवरी अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस लेकिन फिर भी हिंदी को अपनी पहचान पहचान मल्लीन होते हुए क्यों नजर आ रही है? बड़े ही गर्व की बात है हिंदी बोलना, लेकिन आज हिंदी को गर्व की दृष्टि से देखने वाले की संख्या कम क्यों होती जा रही है? यह एक चिंताजनक विषय है। हिंदुस्तानी,हिंदी हिंदवी यह सब इसी के ही तो जनक हैं। हिंदुस्तान में होते हुए हिंदी भाषा की ही दयनीय दशा एक बहुत ही चिंताजनक विषय है। प्राइमरी,एलिमेंट्री में हिंदी एक अनिवार्य विषय है,लेकिन सेकेंडरी हायर, सेकेंडरी तक पहुंचते इसको ऐच्छिक विषय क्यों बना दिया गया? क्या इसके लिए कोई नियम बना या अपनी ही मर्जी से सब हो रहा है। ऐसा जान पड़ता है कि जैसा हिंदी भाषा के अस्तित्व को समाप्त करने की तैयारी है। राजभाषा को अनिवार्य विषय क्यों नहीं बनाया जाता?,जबकि केंद्रीय स्तर पर कार्यालयों का समस्त पत्राचार हिंदी भाषा में हो रहा है।इसकी बावनखड़ी हर प्रकार के भावों को अभिव्यक्त करने में सक्षम है।किसी दूसरी भाषा की इसे आवश्यकता ही नहीं है।जैसे संस्कृत विलुप्त हो रही है, वैसे ही धीरे-धीरे हिंदी भी विलुप्त हो जाएगी फिर इस राष्ट्रीय हिंदी दिवस,अंतर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस का क्या महत्व रह जाएगा? जो काम हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस पर करते हैं,वह काम अपनी राजभाषा को बचाने के लिए प्रतिदिन क्यों नहीं करते ?आशा है कि आप मेरी भावनाओं को समझने में सक्षम होंगे।हिंदी के अस्तित्व के लिए हिंदी भाषा का साथ भी देंगे हमारी मांग है कि हिंदी भाषा को अनिवार्य विषय के तौर पर पढ़ाया जाए ताकि बच्चे अपनी राजभाषा के महत्व,उसके स्वरूप, अपनी संस्कृति को बचाने में सक्षम हो सकें। अंत में हिंदी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए अपनी वाणी को विराम देती हूं।
प्रोफेसर सरोज शर्मा राजकीय महाविद्यालय होशियारपुर पंजाब।