एएम नाथ :नई दिल्ली/ शिमला । सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए चेतावनी दी है कि अगर पर्यावरण हिमाचल प्रदेश पर्यावरण संकट पर ध्यान नहीं दिया गया तो भारत के नक्शे से राज्य का नाम गायब हो सकता है। इसी के साथ कोर्ट ने राज्य सरकार को इस संकट से निपटने के लिए ऐक्शन प्लान पेश करने का आदेश दिया है।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने यह टिप्पणी एक प्राइवेट कंपनी मेसर्स प्रिस्टीन होटल्स एंड रिसॉर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड की उस याचिका को खारिज करते हुए की जिसमें जून 2025 की अधिसूचना को चुनौती गई थी। इस अधिसूचना में श्री तारा माता हिल को हरित क्षेत्र घोषित किया गया था और नए निजी निर्माण पर रोक लगाई गई थी।
अधिसूचना को बरकरार रखने और होटल कंपनी की याचिका पर विचार करने से हाई कोर्ट के इनकार के बाद, पीठ ने राज्य में पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के व्यापक मुद्दों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए एक जनहित याचिका शुरू करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग किया। कोर्ट ने कहा, अगर चीजें आज की तरह ही चलती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पूरा हिमाचल प्रदेश राज्य देश के नक्शे से गायब हो जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण को देखते हुए संवेदनशील क्षेत्रों में आगे निर्माण कार्य रोकने के लिए अधिसूचना का उद्देश्य सराहनीय है, लेकिन ये भी कहा कि इस अधिसूचना को जारी करने में काफी समय लग गया। कोर्ट ने कहा, हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। गंभीर पारिस्थितिक असंतुलन और अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण पिछले कुछ सालों में गंभीर प्राकृतिक आपदाएं आई हैं। इस साल भी बाढ़ और भूस्खलन में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों संपत्तियों को नुकसान पहुंचा है। हिमाचल प्रदेश राज्य में चल रही गतिविधियों से प्रकृति निश्चित रूप से नाराज है।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा इस विनाश के पीछे प्रकृति नहीं बल्कि मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं। अनियंत्रित निर्माण, सड़क विस्तार, जल विद्युत परियोजनाओं और जंगलों की कटाई से ये संकट और ज्यादा बढ़ गया।