चंडीगढ़। कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ व उनके बेटे अंगद सिंह से मारपीट करने के आरोपित इंस्पेक्टर रौनी सिंह की अग्रिम जमानत याचिका पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने ठुकरा दी है।
जस्टिस अनूप चितकारा ने पुलिसिया बर्बरता की निंदा करते हुए कहा कि यह मामला केवल एक अधिकारी से मारपीट का नहीं था, बल्कि यह राज्यसत्ता के प्रतिनिधि माने जाने वाले पुलिसकर्मियों द्वारा देश की सुरक्षा में लगे सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के आत्मसम्मान और उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का मुद्दा बन गया है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस घटना में आरोपित पुलिसकर्मी ही हमलावर थे।
यह हमला पूरी तरह से असंवेदनशीलता, क्रूरता और सत्ता के घमंड का परिणाम था। कोर्ट ने माना कि यह हमला मात्र गाड़ी हटाने की बात पर नहीं हुआ बल्कि इसका उद्देश्य अपमानित करना, डर पैदा करना और सत्ता का अत्याचार दिखाना था। यदि एक सेना का वरिष्ठ अधिकारी खुद की पहचानने के बावजूद पीटा जाता है तो यह पूरी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। कोर्ट ने इस बात पर भी गहरी नाराजगी जाहिर की कि एफआइआर दर्ज करने में आठ दिन का विलंब क्यों हुआ?
ढाबा मालिक की हल्की शिकायत पर उसी दिन झगड़े की एफआइआर दर्ज कर ली गई थी लेकिन कर्नल की गंभीर शिकायत नजरअंदाज कर दी गई। यह दर्शाता है कि पुलिस किस हद तक अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है। आरोपितों ने बाद में खुद को निर्दोष दिखाने के लिए एक निजी अस्पताल से चोटों का बहाना बनाकर मेडिकल रिपोर्ट बनवाई जिसे कोर्ट ने ‘साक्ष्य से छेड़छाड़’ और ‘प्रभाव के दुरुपयोग’ की संज्ञा दी।
कोर्ट ने पूरी घटना को भारतीय पुलिस तंत्र के भीतर फैली उस बीमारी का लक्षण बताया जिसे यदि समय रहते रोका नहीं गया तो इसका असर लोकतंत्र की नींव पर पड़ेगा। जस्टिस चितकारा ने अपने आदेश में दो-टूक लिखा, अदालतें ऐसे बर्ताव को नजरअंदाज नहीं करेंगी। पुलिस में बैठे ऐसे अधिकारी जो कानून को अपने हाथ में लेकर नागरिकों को डराने का काम करते हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही होनी चाहिए।