होशियारपुर/दलजीत अजनोहा : जिस प्रकार पारस पत्थर के संपर्क में लोहा आते ही वह सोना बन जाता है ठीक उसी प्रकार अगर हमारे भवन की वास्तु सही है तो वहां पर रहने वाला हर व्यक्ति सकारात्मक उर्जा से ओत प्रोत रहेगा। सही वास्तु वाले घर में रहने वाला व्यक्ति शारीरिक रूप से, मानसिक रूप से, सामाजिक व आर्थिक रूप से पूर्ण सक्षम रहता है। वास्तु के सामान्य सिद्धांतो को मान कर बनाया गया भवन आपको स्वर्ण की भांति तेजस्वी और मूल्यवान बनाएगा। आप जिस कार्य में हाथ डालेंगे वो पूर्ण होगा । कठिनता सरलता में परिवर्तित हो जाएगी।
भवन निर्माण करते समय भूखण्ड के आकार, पंच तत्वों, आंतरिक वास्तु, बाहरी वास्तु, ब्रह्म, वंश, रज्जू,मूसा, दिशा, अंश ,द्वार, दहलीज,ढलान, पेड़ पौधों से लेकर रंग तक सभी ईकाई सुनियोजित ढंग से होनी चाहिए। साथ ही वास्तु पुरुष मण्डल में विराजित पैंतालीस देवताओं के गुण धर्म , पंच तत्वों का सही समायोजन किया जाना चाहिए। भूमि की ढलान को उतर दिशा पूर्व दिशा और उतर पूर्व अर्थात् ईशान कोण की तरफ रखे। भूमिगत जल स्त्रोत भी ईशान कोण में होना चाहिए।पूर्व दिशा ज्यादा खाली हल्की व रोशनी युक्त रखे।दक्षिण दिशा को भारी और ऊंचा रखना चाहिए।आग्नेय कोण में अग्नि से संबंधित कार्य व रसोई घर होना चाहिए।पश्चिम दिशा को पूर्व की तुलना में कम खुला रखे। मुख्य द्वार वास्तु के अनुरूप होने चाहिएं साथ ही इस बात का ध्यान रखें की किसी भी कोने में घर का मुख्य द्वार नहीं हो।अगर इस बातों को ध्यान में रख कर भवन का निर्माण किया जाता है तो वहां पर रहने वाला हर व्यक्ति भाग्यशाली होता है। पारस पत्थर के भांति अपनी किस्मत को चमका सकता है।