यह एक संयोग है या फिर किसी ‘खास रणनीति’ का हिस्सा, इस पर फिलहाल अटकलें ही चल रही हैं। लेकिन, भाजपा की वर्तमान राजनीति में यह नाम निश्चित ही चौंकाने वाला है। ऐसा नहीं है कि जोशी इस पद के योग्य नहीं है, उनकी गिनती कुशल संगठकों में होती हैं। यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि वर्तमान भाजपा में जिन नेताओं का दबदबा है, जोशी की उनके साथ बिलकुल भी पटरी नहीं बैठती।दरअसल, जगत प्रकाश नड्डा का भाजपा अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल खत्म हो चुका है। वे एक्सटेंशन पर चल रहे हैं। पार्टी की एक व्यक्ति एक पद की नीति में भी फिट नहीं बैठते। क्योंकि उन्हें केन्द्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण पद दिया जा चुका है। ऐसे में अध्यक्ष के लिए नए नामों की चर्चा है। इन्हीं में एक नाम संजय जोशी का भी है। जोशी के बारे में कभी उनके सहयोगी रहे गोरधन झड़ाफिया ने कहा था- ‘अपार क्षमता वाले एक मूक कार्यकर्ता हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय हैं’।
भाजपा को बहुत अच्छे से समझते हैं जोशी : मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री वाले 62 वर्षीय संजय जोशी भाजपा के ‘मैकेनिज्म’ को भी बखूबी समझते हैं। वे संघ के पूर्वकालिक प्रचारक हैं। 1989-90 में संजय जोशी को आरएसएस ने संगठन को मजबूत करने के लिए गुजरात भेजा था। उस समय उन्हें संगठन मंत्री का पद दिया गया था, जबकि नरेन्द्र मोदी संगठन मंत्री के रूप पहले से ही काम कर रहे थे। दोनों ने ही मिलकर पार्टी को मजबूत किया और 1995 में भाजपा ने पहली बार गुजरात में सरकार बनाई।
उस समय मुख्यमंत्री पद के लिए मोदी और जोशी का नाम भी चला था, लेकिन दावेदारी में दोनों पिछड़ गए। तब केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला के नाम मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में उभरे थे। मोदी और जोशी ने केशुभाई का साथ दिया था। लेकिन, दो की लड़ाई में तीसरे को फायदा मिला और सुरेश भाई मेहता मुख्यमंत्री पद पाने में सफल रहे। इसी बीच मोदी को दिल्ली भेज दिया गया और जोशी संगठन महामंत्री बन गए। इसके साथ ही गुजरात में उनका दबदबा भी बढ़ गया।