एएम नाथ। शिमला : हिमाचल प्रदेश नशे की मंडी बन रहा है. यहां नशे का काला कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है और युवा वर्ग तेजी से नशे की दलदल में फंस रहा है. बीते 5 साल में एनडीपीएस के हर वर्ष औसतन 1690 मामले दर्ज हुए हैं।
यहां चिट्टे के डराने वाले आंकड़े सामने आए हैं. जहां 2016 में मात्र 634 ग्राम हेरोइन पकड़ी गई थी, 2017 के बाद प्रदेश में चिट्टे का कारोबार फैला और 2024 में 11 किलोग्राम चिट्टा पकड़ा गया था. हिमाचल अब देश में नशे के मामले में पंजाब के बाद दूसरे नंबर पर है. यहां नशे के खिलाफ काम कर रही संस्थाओं का अनुमान है कि नशे का ये काला कारोबार सालाना 100 करोड़ से ज्यादा का है।
हिमाचल पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में कोरोना महामारी के बाद हर साल 65 करोड़ रू. से ज्यादा कीमत का चिट्टा पकड़ा जा रहा है. पिछले 4 सालों के आंकड़ों को देखें तो हर साल 10 से 14 किलोग्राम के बीच चिट्टा पकड़ा जा रहा है. देवभूमि में मौत के इस नशे का खेल साल 2017 से बढ़ना शुरू हुआ. वर्ष 2016 में प्रदेशभर में मात्र 634.8 ग्राम चिट्टा पकड़ा गया था. एक साल के भीतर ही चिट्टे की मात्रा कुछ ग्राम से बढ़कर 3 किलोग्राम तक पहुंच गई. वर्ष 2017 में 3.41 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी गई, 2018 में 7.70 किलो, 2019 में 7.96 किलो, 2020 में 6.75 किलोग्राम और इसके एक साल के भीतर ही दोगुना बढ़ौतरी हुई. 2021 में 14.90 किलो चिट्टा पकड़ा गया. 2022 में 11.51 किलो, 2023 में 14.70 किलो और बीते साल यानि 2024 में 11.02 किलोग्राम चिट्टा पकड़ा गया. हिमाचल में एक ग्राम चिट्टे की कीमत 5 से 6 हजार रूपए के बीच है.
इन डराने वालों आंकड़ो से स्वास्थ्य मंत्री कर्नल धनी राम शांडिल भी खासे परेशान हैं. स्वास्थ्य मंत्री कर्नल धनी राम शांडिल ने कहा कि सरकार योजनाबद्ध तरीके से नशे के खिलाफ अभियान चलाएगी, इसके साथ ही कानून में भी बदलाव किया जाएगा. उनका कहना है कि जब तक समाज एकजुट होकर लड़ाई नहीं लड़ेगा तब तक इस बुराई को खत्म नहीं किया जा सकता है. ये तो वो मामले हैं जो पकड़े गए हैं और जो पकड़ में नहीं आए उनकी संख्या का अंदाजा लगा पाना कठिन है. कितने युवा नशे की गिरफ्त हैं, इसका भी सही आंकड़ा नहीं मिल पा रहा है. देश में अगर नशे की बात करें तो पंजाब के बाद हिमाचल दूसरे नंबर है. आज स्थिती ये कि चिट्टा हजारों युवाओं की नसों में जाकर कई नस्लों को दांव पर लगा चुका है. नशे से न केवल युवक और युवतियां अंदर से खोखले हो रहे हैं बल्कि कई काल के ग्रास में समा चुके हैं. पुलिस के अनुसार एनडीपीएस एक्ट के तहत प्रदेश में बीते 5 साल में एनडीपीएस के हर वर्ष औसतन 1690 मामले दर्ज हो रहे हैं।
साल 2020 में हिमाचल में एनडीपीएस के तहत 1538 मामले दर्ज किए गए, वर्ष 2021 में 1537, 2022 में 1517, 2023 में 2147 और साल 2024 में नशे के 1714 मामले दर्ज किए गए. साल 2024 में पुलिस जिलावार दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार पुलिस जिला बिलासपुर में 196, बीबीएन में 84, हमीरपुर में 65, कांगड़ा में 149, किन्नौर में 26, कुल्लू में 241, लाहौल-स्पीति में 7, मंडी में 227, नुरपुर में 79, शिमला में 267, सिरमौर में 103, सोलन में 80 और ऊना जिला में 105 मामले सामने आए. अब सरकार कह रही है कि नशे के मामले में जो भी पकड़ा जाएगा उसे बख्शा नहीं जाएगा. सीएम के मीडिया सलाहकार नरेश चौहान का कहना है कि इस मामले में चाहे किसी भी विभाग का अधिकारी हो या कर्मचारी हो, नेता-सिपाही-संतरी किसी को बख्शा नहीं जाएगा।
नशे के मामलों में उत्कृष्ट कार्य कर चुके कुछ पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों ने बताया कि इस महामारी के खात्मे के लिए सबसे पहले डिमांड को कम करना होगा. तय नियमों के अनुसार ड्रग एडिक्शन सेंटर होने चाहिए, डॉक्टरों और साइकेट्रिस की निगरानी में इलाज हो. साथ ही नशे के मामले में एनसीबी की तर्ज पर हिमाचल में भी स्वतंत्र एजेंसी बनाई जाए. उन्होंने ये भी बताया कि कई रसूखदार भी इस खेल में शामिल हैं. नेता से लेकर सरकारी अधिकारी, कर्मचारी, पुलिसकर्मी और डॉक्टर तक कई लोग मौत के इस धंधे में शामिल हैं. अब उन अभिभावकों को भी आगे आने की जरूरत हैं जिनके बच्चे नशाखोरी में डूब गए हैं. उन्हें भी बाहर निकाला जा सकता है, अगर छुपाने के बजाए उन्हें सामने लाया जाए।