आज़ादी के बाद भारत ने हर क्षेत्र में तरक्की की राह पकड़ी। चाहे पाकिस्तान और चीन से युद्ध हुए हों या आतंकवाद की चुनौती सामने आई हो, भारत ने हमेशा साहस और क्षमता के साथ आगे बढ़ने की कोशिश की है। लेकिन आज का दौर कुछ ख़तरनाक नज़र आ रहा है। सामाजिक ढांचा धीरे-धीरे बिखरता जा रहा है और युवाओं में बेचैनी लगातार बढ़ रही है।
इस बेचैनी का सबसे बड़ा कारण है—बेरोज़गारी। भारत की बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में रोज़गार के अवसर न केवल कम हैं, बल्कि लगातार घट भी रहे हैं। तकनीक ने जहां एक ओर कार्यप्रणाली को आसान बनाया है, वहीं दूसरी ओर यह नौकरियों की संख्या में भारी कमी का कारण भी बन रही है।
सरकारी विभागों को धीरे-धीरे निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। पहले जहां किसी कार्यालय में 30 से 40 कर्मचारी काम करते थे, अब वहां एक कंप्यूटर और एक व्यक्ति ही पर्याप्त समझा जाता है। यह स्थिति युवाओं के लिए न केवल रोज़गार के अवसर घटा रही है, बल्कि उनका आत्मविश्वास भी तोड़ रही है। नतीजा यह है कि युवा नशे की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं।
यह केवल युवाओं की कमज़ोरी नहीं, बल्कि सिस्टम की विफलता है। राजनीतिक नेता और प्रशासनिक तंत्र भी इसमें कहीं न कहीं शामिल दिखाई देते हैं। पिछले समय में कई राजनीतिक और प्रशासनिक व्यक्तियों के नशे से जुड़े मामलों में फंसे होने की खबरें सामने आ चुकी हैं, जो यह साफ़ दर्शाती हैं कि यह समस्या केवल मॉम लोगों तक ही सीमित नहीं।
अगर यही हालात बने रहे, तो वो दिन दूर नहीं जब भारत एक पिछड़ा हुआ देश बन जाएगा।
इस समस्या का समाधान भी स्पष्ट है—सरकारों को युवाओं को रोज़गार उपलब्ध कराने की दिशा में गंभीरता से काम करना होगा। युवाओं को स्वरोज़गार परक प्रशिक्षण, तकनीकी शिक्षा और उद्यमशीलता के लिए प्रेरित किया जाए, ताकि वे खुद के पैरों पर खड़े होकर न केवल अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें, बल्कि देश की तरक्की में भी योगदान दे सकें।
सरकार, शैक्षणिक संस्थानों और समाज को मिलकर युवाओं को नशे से दूर रखकर उन्हें रचनात्मक दिशा में आगे ले जाना होगा। क्योंकि युवा ही भारत का भविष्य हैं—अगर वे संभल गए, तो देश आगे बढ़ेगा; नहीं तो यह रास्ता पीछे की ओर भी जा सकता है।
Bhag Singh Atwal.
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