राजनीति के चाणक्य रहे स्व. पंडित सुखराम भी नहीं समझ सके लोगों की नब्ज
एएम नाथ। शिमला : मंडी संसदीय क्षेत्र न सिर्फ आधे हिमाचल प्रदेश में फैला हुआ चुनाव क्षेत्र है। इस क्षेत्र के मतदाता कब क्या कर बैठें, यह भी इस यहां का एक और अनोखा पहलू है। मंडी संसदीय क्षेत्र की जनता ने दिग्गज नेताओंं और राजा रानियों को चुनाव जीता कर देश की संसद में भेजा, तो कई बार दिग्गजों को हार का स्वाद भी चखाया है। मंडी सीट के 17 हलकों के 13,59,497 मतदाता किस कब किस करवट बैठे जाएं, यह राजनीति के चाणक्य रहे स्व. पंडित सुखराम भी नहीं समझ सके। यहां स्व. वीरभद्र सिंह, राजा महेश्वर सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, वर्तमान सांसद प्रतिभा सिंह, पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर और सुखराम व उनके पौते आश्रय शर्मा को हार का सामना करना पड़ा है।
इतिहास पर अगर नजर दौड़ाएं, तो मंडी सीट स्वर्गीय पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की कर्मभूमि रही है। वह यहां तीन बार जीत कर देश की संसद में पहुंचे और केंद्रीय मंत्री भी बने। 2009 में प्रदेश में भाजपा की सरकार रहते हुए भी वीरभद्र सिंह जीतने में सफल रहे। हालांकि जीत का अंतर 13997 मत ही था, जबकि 1977 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा अचानक चुनावों की घोषणा करने से बने माहौल में वीरभद्र सिंह को भी हार का सामना करना पड़ा। वीरभद्र सिंह को उस समय भारतीय लोकदल के गंगा सिंह से हार मिली थी।
पंडित सुखराम को भी हार का सामना करना पड़ा। पंडित सुखराम मंडी सीट से तीन बार जीत कर लोकसभा में पहुंचे और केंद्रीय मंत्री रहे। हालांकि पंडित सुखराम को मंडी सीट पर 1989 में भाजपा के महेश्वर सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा। उस समय देश में चीनी की भारी किल्लत हो गई थी।