शेरे-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने रण कौशल से बहुत कम उम्र में एक ऐसे शानदार और बड़े साम्राज्य का गठन कर डाला था — शेरे-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह को उनकी जयंती पर सतलुज ब्यास टाइम्स की और से कोटि कोटि नमन

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शेरे-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की 12 साल की उम्र में पिता का साया उठ गया था। चेचक ने एक आंख छीन ली, पढ़ने-लिखने का खुद को मौका नहीं मिला लेकिन शिक्षा के पुजारी थे। अपने रण कौशल की वजह से उन्होंने बहुत कम उम्र में एक ऐसे शानदार और बड़े साम्राज्य का गठन कर दिया, जिसका उनके जीते जी अंग्रेज भी कुछ न बिगाड़ सके। अमृतसर स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारे और वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर को कई टन सोना दान किया। वह कोहिनूर हीरा भगवान जगन्नाथ मंदिर को दान करना चाहते थे लेकिन वे खुद ऐसा कर न सके और बाद में यह बेशकीमती हीरा अंग्रेजों के हाथ लगा जिसे उन्होंने महारानी विक्टोरिया को भेंट कर दिया।
यह बहुत छोटा परिचय है महाराजा रणजीत सिंह का, जिनकी आज यानी 13 नवंबर को जन्मजयंती है. 243 साल पहले उनका जन्म गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) में महाराजा महा सिंह एवं राज कौर के यहां हुआ था। उन दिनों पंजाब पर सिखों और अफगानों का राज था। उन्होंने पूरे इलाके को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट रखा था। हर इलाके को मिसल कहा जाता था। इन्हीं में से एक मिसल सुकर चकिया के कमांडर थे उनके पिता महाराजा महा सिंह जब वे 12 साल के थे तभी उनके पिता का निधन हो गया और राजपाट की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई।
लाहौर पर कब्जा :
महाराजा रणजीत सिंह एक बहादुर और दूरदर्शी सेनापति थे। उनकी सेना में भारतीय जनरल तो थे ही, विदेशी सैन्य अफसर भी उनकी सेना में बड़ी संख्या में थे। इसीलिए उनकी सेना ज्यादा कुशल थी। सख्त ट्रेनिंग सिख सेना का अहम हिस्सा था, इसी के सहारे एक मिसल के महाराजा से रणजीत सिंह ने अपने राज्य को खूब विस्तार दिया और एक ऐसे पंजाब राज्य राज्य की स्थापना की जिसमें कश्मीर भी था और काबुल भी, लाहौर भी था और आज के पाकिस्तान के अन्य इलाके भी राजपाट संभालने के महज कुछ साल बाद ही उन्होंने लाहौर को न केवल जीत लिया बल्कि उसे ही राजधानी बनाया। उनकी समाधि आज भी लाहौर में है। पूरे जीवन में उन्होंने असंख्य लड़ाइयां लड़ी वे जिस ओर घूम जाते, उसे हासिल करके ही शांत होते।उनकी वीरता के किस्सों से इतिहास भरा पड़ा है।
उनकी सूझबूझ और रणकौशल का अंदाजा इस बात से चलता है कि जब तक वे जिंदा रहे अंग्रेज लगभग पूरे भारत पर अपना प्रभाव जमा चुके थे लेकिन पंजाब में उनकी दाल नहीं गली वह कोशिश लगातार करते रहे लेकिन कामयाबी नहीं मिली। महाराजा रणजीत सिंह जिन्हें शेर-ए-पंजाब के नाम से जाना जाता है, उनके निधन के बाद अंग्रेजों ने कुछ ही सालों में पंजाब पर कब्जा कर लिया। शेर-ए-पंजाब के पुत्रगण अपने राज्य की रक्षा न कर सके, जिस तरीके से उनके पिता ने की, जबकि उनके पास सेना वही थी, सेनापति भी वही था, कुछ नहीं था तो केवल वह कौशल, जो महाराजा रणजीत सिंह के पास था।

सभी धर्मों में विश्वास : महाराजा रणजीत सिंह धर्मनिरपेक्ष राजा थे। किसी को उसका धर्म बदलने का कोई दबाव नहीं था। उनकी अपनी सेना से लेकर राज्य तक में सभी जाति-धर्म के लोग रहते थे. सब सुरक्षित थे। किसी पर कोई दबाव नहीं था। वह शिक्षा और समाज की भलाई पर केंद्रित काम खूब करवाते थे। स्कूल, मदरसे, गुरुद्वारे, मंदिर, मस्जिद उनकी नजर में सब एक थे। वह सबकी भलाई के लिए जीवन पर्यंत काम करते रहे। यह उनकी खूब थी, इसीलिए जनता का भरोसा उन्होंने जीत रखा था। उनका नेटवर्क ऐसा कि छोटी से छोटी सूचनाएं भी उन तक आसानी से पहुंचती थीं, नतीजा दुश्मन चाहकर भी उनके राज में कुछ खास नहीं कर पाते थे। उनके अनेक किस्से मशहूर हैं।

कोहिनूर हीरे की चर्चा : जिस कोहिनूर हीरे की चर्चा आज भी होती है, जो अंग्रेज लूटकर ले गए थे, उसका किस्सा भी महाराजा रणजीत सिंह से ही जुड़ता है। अफ़गान शासक शाह शुजा को कश्मीर के सूबेदार अता मोहम्मद ने एक किले में कैद करके रखा था। शुजा की बेगम महाराजा रणजीत सिंह के पास आई और पति की सुरक्षा की गुहार की। उसके बदले कोहिनूर हीरा देने का वायदा किया। महाराजा ने अपना वायदा निभाया और शुजा को छुड़ा लाए। उसे लाहौर में लाकर रखा गया लेकिन शुजा की बेगम की नियत बदल गई. वे कई महीनों तक टालमटोल करती रहीं। फिर सख्ती के बाद कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के पास आया, जिसे वे जगन्नाथ मंदिर में दान करना चाहते थे लेकिन वे वहां तक पहुंच नहीं पाए और आज वह हीरा ब्रिटेन के पास है।

घुड़सवारी के शौकीन :महाराजा रणजीत सिंह घुड़सवारी के बेहद शौकीन थे. वे खुश होते तब भी घुड़सवारी करते और किसी बात पर नाराज होते तब भी । उनके अस्तबल में 12 हजार से ज्यादा घोड़े थे। घोड़ों का शौक उन्हें इस कदर था कि तमाम देशी-विदेशी नस्ल के घोड़े उनके पास थे। उनकी यह कमजोरी लोग जान चुके थे। नतीजे में उन्हें घोड़े भेंट करने की कवायद शुरू हो गई. हैदराबाद के निजाम तक ने उन्हें अरबी घोड़े भेंट किये थे। वह मेहमानों से घोड़ों की चर्चा करना पसंद करते थे। वह घोड़ों की साज-सज्जा में भी हीरे-सोने का इस्तेमाल करते थे। उनके नाम भी वे शायराना रखते थे।
झंग के नवाब के पास शानदार घोड़े थे। उन्हें पता चला तो संदेश भेजवाया कि वे कुछ घोड़े भेंट कर दें। नवाब ने भेंट तो नहीं किया अलबत्ता मजाक उड़ाया। तो उसे अपने इलाके से हाथ धोना पड़ा। लैला नाम की एक घोड़ी थी। वह पेशावर के शासक यार मोहम्मद के पास थी। उसकी खूबसूरती के खूब चर्चे थे। महाराजा उसे हर हाल में अपने अस्तबल में चाहते थे। लेकिन यह संभव नहीं हुआ। उधर, इस लैला के लिए वे मजनूं की तरह व्याकुल थे। नतीजा शासक को पेशावर से हाथ धोना पड़ा। लेकिन लैला को उसने काबुल भेजवा दिया। उधर, लैला की तलाश में जासूस लगाए गए। कई लोगों ने उसके मरने की कहानी भी पेश की, पर लैला मिल गई। उसे शाही अंदाज में लाहौर लाया गया। सड़क की धुलाई तक करवाई गई। यह उसके प्रति उनकी मोहब्बत थी।

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