चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आने वाले साधारण मामलों को भी एससी व एसटी स्पेशल एक्ट का रंग देकर लोगों को झूठा फंसाया जा रहा है। इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इस चलन को रोके जाने की जरूरत है। जस्टिस अशोक कुमार वर्मा ने एक मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि सिविल विवादों में बदला लेने के लिए एससी व एसटी एक्ट को हथियार बनाया जा रहा है। इसका नतीजा यह है कि स्पेशल एक्ट के तहत आने वाले सही मामलों में भी आरोपी संदेह का लाभ ले रहे हैं और केस कमजोर हो रहे हैं। इससे स्पेशल एक्ट को बनाए जाने का उद्देश्य समाप्त हो रहा है। ऐसे में जरूरत है कि झूठे मामलों के साथ सख्ती से निपटा जाए। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि मौजूदा मामला इस बात का शानदार उदाहरण है कि आवेश में आकर किसी को कुछ कहना सोच समझ कर कही गई बात नहीं माना जा सकता। गुस्से के चंद लम्हों में यदि किसी को जातिसूचक संबोधन किया गया हो तो उसे सार्वजनिक रूप से नीचा दिखाना नहीं कहा जा सकता। यह समझने की बात है कि दो लोग गुस्से में एक दूसरे को कुछ कहते हैं तो उसे स्पेशल एक्ट के दायरे में रखा अपराध कैसे कहा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में गुस्से में एक दूसरे को अपशब्द कहे गए जिसे स्पेशल एक्ट के अपराध में नहीं रखा जा सकता। यहां जानबूझकर सार्वजनिक रूप से बेइज्जत करने का कोई मामला नहीं है। दायर मामले के मुताबिक वाहन पार्किंग को लेकर दोनों पक्षों के बीच झगड़ा हुआ। इस झगड़े में आरोपियों ने दूसरे पक्ष से गाली गलौज की और उन्हें जातिसूचक आपत्तिजनक शब्द कहे। बता दें कि हिसार पुलिस ने इस मामले में 13 अप्रैल 2022 को एक एफआईआर दर्ज की। शिकायतकर्ता की मेडिकल रिपोर्ट में साधारण चोट लगने की बात कही गई। इस मामले में हिसार की अदालत ने आरोपियों की गिरफ्तारी से बचने के लिए दायर अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने मामले में दोनों आरोपियों की जमानत याचिका को मंजूर कर लिया।