सिडनी में राष्ट्रमण्डल संसदीय सम्मेलन के समापन पर कुलदीप सिंह पठानियां ने कहा “भारत दुनियां का जीता जागता राष्ट्र पुरूष”

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 भारत धार्मिक तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से प्रेरित देश
एएम नाथ। सिडनी/शिमला : सिडनी स्थित न्यू साउथ वेल्स के सिडनी अन्तर्राष्ट्रीय कनवेंशन सैंटर में 3 नवम्बर से आरम्भ हुए 67वें राष्ट्रमण्डल संसदीय सम्मेलन का 8 नवम्बर, 2024 को समापन हो गया है।
सम्मेलन में भाग लेते हुए विधान सभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने कहा कि भारत दुनियां का जीता जागता राष्ट्र पुरूष है। पठानिया ने कहा कि भारत धार्मिक तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से प्रेरित देश है जहाँ 140 करोड़ देशवासी अलग – अलग धर्म तथा संस्कृति होने के बावजूद भी एक परिवार तथा समुदाय के रूप में रहते हैं।
पठानिया ने कहा कि देशवासी दिवाली, ईद तथा क्रिसमस मिलकर मनाते हैं जो इसकी एकता तथा अखण्डता के प्रति कटिबद्वता को दर्शाता है।
पठानिया ने कहा कि हमारा देश पौराणिक परम्पराओं को मानने वाला देश है और हम अब भी “अतिथि देवो भव:” की संस्कृति के कायल हैं अर्थात हम अभी भी अपने अतिथि को देव स्वरूप मानते हैं।
कुलदीप सिंह पठानिया ने कहा कि भारत प्रौद्योगिकी से लैस एक आधुनिक राष्ट्र है जिसकी टैक्नोलॉजी की मिसाल आज भी दुनियां में दी जाती है। उन्होने कहा कि हमारा राज्य भी इस दिशा में निरन्तर आगे बढ़ रहा है।
पठानिया ने कहा कि हिमाचल प्रदेश विधान सभा के ई-विधान मॉडल की देश तथा दुनियां ने प्रशंसा की है। मलेशियन पार्लियामेंट के स्पीकर  7 सदस्य दल के साथ पूर्व में हिमाचल प्रदेश की ई- विधान प्रणाली को देखने व जानने  शिमला आ चुके हैं।
हम ई- विधान प्रणाली लागू करने वाले पूरे देश मे प्रथम  हैं और अब हम राष्ट्रीय ई–विधान को अपनाने जा रहे हैं। इस अवसर पर देश  विदेश के  कई जनप्रतिनिधि उपस्थित थे।
सम्मेलन के आखिरी दिन चर्चा के लिए चयनित विषय “भेदभावपूर्ण कानून का मुकाबला: लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ सक्रियता के 365 दिन” पर अपने विचार प्रकट करते हुए कुलदीप पठानियां ने कहा कि लिंग आधारित हिंसा मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन है जो सभी जनसांख्यिकीय व्यक्तियों को प्रभावित करती है तथा महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समूहों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
इसमें व्यक्तियों के लिंग के आधार पर शारीरिक, यौन, भावनात्मक और आर्थिक शोषण सहित कई हानिकारक व्यवहार शामिल हैं। लिंग आधारित हिंसा न केवल गंभीर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुँचाती है, बल्कि प्रणालीगत असमानता और भेदभाव को भी बढ़ावा देती है, जिससे लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय की दिशा में प्रगति बाधित होती है।
हालाँकि यह पहचानना आवश्यक है कि पुरूष और लड़के भी खासकर यौन हिंसा या घरेलू दुर्व्यवहार जैसे संदर्भों में लिंग आधारित हिंसा के शिकार हो सकते हैं।
उन्होने कहा कि कानूनी सुधारों की निरंतर वकालत के प्रयासों से भेदभावपूर्ण कानूनों को निरस्त किया जा सकता है और जीबीवी के पीड़ितों के लिए मजबूत सुरक्षा अधिनियम बनाया जा सकता है।
यह पहल सरकारों और नीति निर्माताओं से अपने एजेंडे में लैंगिक  समानता और हिंसा के उन्मूलन को प्राथमिकता देने का आग्रह करती है। साक्ष्य–आधारित अनुसंधान और सर्वोतम प्रथाओं को बढ़ावा देकर, अभियान नीतिगत निर्णयों को सूचित करने और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि कानून प्रभावी रूप से बचे लोगों की रक्षा  करें और अपराधियों को जवाबदेह ठहराए।
वकालत के प्रयास अक्सर व्यापक कानूनी ढाँचे की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो लिंग आधारित हिंसा के विभिन्न रूपों को संबोधित  करते है, यह सुनिश्चित करते हैं कि बचे लोगों को न्याय और समर्थन मिले।
पठानिया ने कहा कि भेदभावपूर्ण कानून का मुलाबला करने में अन्तर्राष्ट्रीय रूपरेखा  और सम्मेलन भेदभावपूर्ण कानून का मुकाबला करने के लिए अतिरिक्त रास्ते प्रदान करते हैं। नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अन्तर्राष्ट्रीय अनुबंध (आईसीसीपीआर) और विभिन्न संयुक्त राष्ट्र घोषणाओं  जैसी संधियाँ मानव अधिकारों के लिए वैश्विक मानक निर्धारित करती हैं, जिन्हें घरेलू कानूनों को चुनौती देने के लिए लागू किया जा सकता है।
जो देश इन समझौतों पर हस्ताक्षर करते हैं, वे समानता और गैर – भेदभाव के सिद्वांतो को बनाए रखने के लिए बाध्य है, जिससे नागरिक समाज के लिए सरकारों पर दबाव बनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय तंत्र के साथ जुड़ना अनिवार्य हो जाता है।
विधान सभा अध्यक्ष सम्मेलन के बाद तीन देशों क्रमश: न्यूजीलैंड, जापान तथा दक्षिण कोरिया के अध्ययन प्रवास पर रहेंगे तथा विधान सभा उपाध्यक्ष विनय कुमार व विधान सभा सचिव यशपाल शर्मा भी साथ में मौजूद रहेंगे।
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