चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि पति-पत्नी के बीच होने वाले विवाद और गलतफहमियां, चाहे वे कितनी भी बार क्यों न हों, उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाया या मजबूर करने के रूप में तब तक नहीं माना जा सकता जब तक कि इसके पीछे कोई ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य न हो।
इसी तर्क के आधार पर जस्टिस संदीप मौदगिल की एकल पीठ ने आरोपित महिला को नियमित जमानत प्रदान कर दी जो आत्महत्या के लिए मजबूर करने के तहत लगभग एक वर्ष से अधिक समय से हिरासत में थीं।
एफआईआर के अनुसार आरोपित महिला की शादी फरवरी 2024 में लवप्रीत सिंह से हुई थी। शिकायतकर्ता मृतक के भाई ने आरोप लगाया कि शादी के बाद महिला अपने पति से झगड़ने लगीं और किसी अन्य व्यक्ति से फोन पर बातचीत तथा वीडियो कॉल्स किया करती थीं। इस बात से मानसिक रूप से परेशान होकर लवप्रीत ने 21 मई 2024 को कीटनाशक खाकर आत्महत्या कर ली थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर में आत्महत्या के लिए प्रत्यक्ष रूप से उकसाने का कोई स्पष्ट आरोप नहीं है, न ही कोई सुसाइड नोट बरामद हुआ है। साथ ही महिला के खिलाफ कोई पूर्व आपराधिक इतिहास भी नहीं है।
उन्होंने यह भी बताया कि जांच पूरी हो चुकी है, चालान पेश हो चुका है और सह-अभियुक्त को पहले ही नियमित जमानत मिल चुकी है। अब तक किसी भी गवाह का परीक्षण नहीं हुआ है, जिससे स्पष्ट है कि मुकदमे में लंबा समय लग सकता है।
सरकारी वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि मृतक अपनी पत्नी के किसी अन्य पुरुष से अवैध संबंधों के कारण अवसाद में था, जिससे उसे आत्महत्या की ओर धकेला गया। हालांकि कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल वैवाहिक विवाद या मानसिक तनाव, जब तक कि ठोस रूप से उकसाने का प्रमाण न हो, उसे आत्महत्या के लिए प्रेरणा नहीं माना जा सकता। सभी तथ्यों को देखते हुए कोर्ट ने महिला को नियमित जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए।