चंडीगढ़ । पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा के पलवल जिले में पांच साल की बच्ची के दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए आरोपित की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है।
कोर्ट ने साफ कर दिया कि दोषी को बिना किसी रिहाई या माफी के 30 साल तक जेल में रहना होगा, ताकि “समाज की अन्य बच्चियों को आरोपित की विकृत मानसिकता से सुरक्षित रखा जा सके।”
हाईकोर्ट ने जुर्माने की राशि बढ़ाते हुए उसे तीस लाख करते हुए निर्देश दिया कि पूरा जुर्माना पीड़ित बच्ची के माता-पिता और भाई-बहनों को समान रूप से मुआवज़े के तौर पर दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि पीड़ित परिवार को यथासंभव न्यायसंगत राहत प्रदान करना भी है।
अभियुक्त की अपीलों पर विस्तृत सुनवाई के बाद सुनाया फैसला
यह फैसला जस्टिस अनूप चितकारा और जस्टिस सुखविंदर कौर की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट द्वारा भेजे गए डेथ रेफरेंस (मौत की सजा की पुष्टि) और अभियुक्त की अपीलों पर विस्तृत सुनवाई के बाद सुनाया।
पीठ ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सात साल की सजा पाए आरोपी की मां को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि वह केवल अपने “राजा बेटे” को बचाने की कोशिश कर रही थी और इस आधार पर उसे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जा सकता।
पीड़िता की उम्र पांच साल थी
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह हत्या पूर्व नियोजित नहीं थी, बल्कि दुष्कर्म के सबूत मिटाने की घबराहट में की गई। पीड़िता की उम्र घटना के समय पांच साल, सात महीने और 14 दिन थी। 31 मई 2018 को आरोपित, जो बच्ची के पिता के यहां काम करता था और टेंट लगाने का व्यवसाय करता था, बच्ची को अपने साथ घर ले गया।
वहां उसने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया और फिर रसोई के चाकू से कई वार कर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद शव को आटे के ड्रम में छिपा दिया गया, जिसे उसकी मां इस्तेमाल करती थी।
अदालत ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की कड़ी पूरी तरह साबित होती है। ग्रामीणों ने आरोपित को बच्ची का हाथ पकड़कर अपने घर की ओर जाते देखा था। आरोपित ने बच्ची के पिता को झूठा बताया कि उसने उसे प्लांट के पास छोड़ दिया है। बाद में बच्ची का शव आरोपित के घर के परिसर में रखे ड्रम से बरामद हुआ। ड्रम और पास पड़े पत्थर पर मिले खून के धब्बे बच्ची के डीएनए से मेल खाते थे।
आरोपी के कपड़ों पर डीएनए नहीं मिला
हालांकि, आरोपित के कपड़ों पर डीएनए नहीं मिला और मेडिकल जांच में वीर्य के स्पष्ट प्रमाण नहीं पाए गए, लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि अन्य ठोस सबूतों के सामने ये कमियां मामले को कमजोर नहीं करतीं।
अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपित को फांसी देना उचित नहीं होगा। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के ऐसे ही मामलों के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि समाज की सुरक्षा के लिए आरोपी को जीवन भर के लिए निष्क्रिय करना अधिक उपयुक्त दंड है।
‘माताएं बेटों को लेकर अंधा प्रेम रखती हैं’
आरोपित की मां की भूमिका पर अदालत ने माना कि उसने तलाशी के दौरान विरोध किया और ग्रामीणों के घर में घुसने पर बिजली बंद कर दी थी। इसके बावजूद पीठ ने टिप्पणी की कि इस क्षेत्र में अक्सर माताएं अपने बेटों के प्रति अंधा प्रेम रखती हैं। उसकी एकमात्र गलती यह थी कि वह अपने राजा बेटे को बचाने की कोशिश कर रही थी, जिसके लिए उसे दंडित नहीं किया जा सकता।
