पंचायत चुनाव में देरी के मामले में राज्यपाल ने पूछा- आखिर प्रदेश में बड़ा कौन मंत्री या अधिकारी?

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एएम नाथ । शिमला : हिमाचल प्रदेश में पंचायती राज चुनावों में देरी को लेकर सरकार, प्रशासन और राज्य चुनाव आयोग के बीच खींचतान तेज हो गई है। मामला अब राजभवन तक पहुंच चुका है। राज्य चुनाव आयुक्त अनिल खाची ने पंचायत चुनाव की स्थिति पर तैयार की गई रिपोर्ट राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल को सीलबंद लिफाफे में सौंपी।

इसके बाद राज्यपाल ने भी इस पूरे मामले पर सख्त रुख अपनाते हुए चुनाव समय पर करवाने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि यदि चुनाव समय पर न हों तो अस्थिरता पैदा हो सकती है। साथ ही उन्होंने सरकार के मंत्रियों और जिलों के उपायुक्तों के परस्पर विरोधी बयानों पर भी प्रश्न उठाए और पूछा कि दोनों में से बड़ा कौन है?

राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य चुनाव आयुक्त ने जो रिपोर्ट दी है, उसका अध्ययन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि पंचायत चुनाव समय पर कराने में कोई दिक्कत नहीं, जबकि अधिकारी और 7 जिलों के डीसी कह रहे हैं कि वर्तमान हालात चुनाव के अनुकूल नहीं हैं। राज्यपाल ने इन्हीं विरोधाभासों पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर प्रदेश में बड़ा कौन है मंत्री या अधिकारी? उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार और राज्य चुनाव आयोग मिलकर निर्णय लें और संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पंचायत चुनाव तय समय पर करवाएं। राज्यपाल ने कहा कि जैसे विधानसभा चुनावों में देरी राज्य की स्थिरता को प्रभावित करती है, उसी प्रकार पंचायत चुनावों का समय पर होना भी बेहद जरूरी है।

राज्यपाल ने यह बातें शुक्रवार को भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षा विभाग द्वारा आयोजित लेखा सप्ताह (ऑडिट वीक) के शुभारंभ समारोह में कहीं। उन्होंने कहा कि भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षा संस्थान की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे ईमानदार और सक्षम अधिकारी तैयार करे, जो सार्वजनिक धन का जनहित में सही उपयोग सुनिश्चित कर सकें। उन्होंने कहा कि कैग की रिपोर्टें कई बार राज्य और देश में राजनीतिक समीकरण बदल देती हैं, क्योंकि ये रिपोर्टें सटीक और पारदर्शी होती हैं। इसी लेखा परीक्षण प्रणाली की वजह से सरकारें और अधिकारी जवाबदेह बने रहते हैं।

इसी दौरान राज्यपाल ने हिमाचल प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि बीते 24 घंटों में दो स्थानों पर गोलीबारी की घटनाएं हिमाचल जैसे शांत प्रदेश के लिए चिंताजनक संकेत हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को इसे प्राथमिकता देकर दुरुस्त करना चाहिए। नशा मुक्ति अभियान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जागरूकता कार्यक्रमों से असर दिख रहा है और अब सरकार को कठोर कदम भी उठाने चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि देवभूमि हिमाचल की पवित्रता और पहचान को बनाए रखना हम सभी का दायित्व है।

उधर, पंचायत चुनावों में देरी का मुद्दा हिमाचल हाईकोर्ट में भी विचाराधीन है। 16 नवंबर को हुई सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और जस्टिस जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर 21 दिसंबर तक विस्तृत जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने अगली सुनवाई 22 दिसंबर तय की है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि सरकार समय पर चुनाव करवाने में इच्छुक नहीं है और न ही कोई अधिसूचना जारी की गई है, जिससे पंचायत स्तर पर काम प्रभावित हो रहा है। याचिका में कहा गया है कि पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने वाला है, ऐसे में चुनाव टालना संविधान के अनुच्छेद 243-ई का उल्लंघन है।

सरकार की ओर से अदालत में पेश महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार 21 जनवरी तक पंचायत चुनाव प्रक्रिया शुरू करने के पक्ष में है। दूसरी ओर, प्राकृतिक आपदा के कारण हालात प्रभावित होने के कारण मुख्य सचिव ने 8 अक्टूबर को डिजास्टर एक्ट का हवाला देते हुए हालात सामान्य होने के बाद चुनाव करवाने की बात कही थी।

इस बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने 3548 ग्राम पंचायतों और 70 शहरी निकायों की मतदाता सूचियां तैयार कर ली हैं। केवल हमीरपुर जिले की 29 पंचायतों की सूची बाद में जारी की जाएगी। प्रदेश में कुल 55,19,709 मतदाता पंजीकृत हैं। पंचायतों के पुनर्गठन और सीमांकन में बदलाव के कारण चुनाव कार्यक्रम और आगे बढ़ गया है। पिछला पंचायत चुनाव दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच तीन चरणों में हुआ था।

 

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