होशियारपुर । ब्रह्मशंकर जिम्पा द्वारा कांग्रेस पार्टी से बार-बार बगावत किए जाने के बावजूद उन्हें पार्टी ने सुधरने का मौका दिया। लेकिन, जिम्पा पार्टी से मिले सम्मान को पचा नहीं पा रहे तथा उन्होंने एक बार फिर पार्टी से बगावत करके साबित कर दिया है कि वह निजी स्वार्थ के लिए किसी भी स्तर पर जा सकते हैं। इनके द्वारा बार-बार किए जा रहे इस प्रकार के विद्रोह के लिए अगर यह भी कहा जाए कि इनकी रगों में पार्टी के लिए बगावत का खून है तो कुछ गलत नहीं होगा। इसलिए पार्टी ने इनकी विरोधी गतिविधियों को देखते हुए इन्हें 6 साल के लिए पार्टी से निष्काशित कर दिया है। यह जानकारी जिला प्रधान डा. कुलदीप कुमार नंदा व शहरी अध्यक्ष मुकेश डावर ने दी। इस अवसर पर रजनीश टंडन, सुदर्शन धीर व हरीश आनंद भी मौजूद थे। इस मौके पर डा. नंदा ने बताया कि 2003 में जब कांग्रेस की सरकार थी तो उस समय भी नगर परिषद चुनाव में जिम्पा ने मां पार्टी से गद्दारी करते हुए पीठ में छुरा घोपा था और विरोधियों से मिलकर पार्टी के प्रधान पद के अधिकारित उम्मीदवार का विरोध जताया था। इसके बाद उन्होंने 2007 में भी कांग्रेस के प्रधान पद के उम्मीदवार सुरिंदर शिंदा, जिनके नाम का अनुमोदन सरवन सिंह ने किया था, का भी जिम्पा ने विरोध किया था और भाजपा के एक पूर्व मंत्री से मिलकर अपनी मां पार्टी से बगावत की थी। इतना ही नहीं 2004 में जब कांग्रेस का लैफ्ट पार्टी के साथ संझौता हुआ था और यहां की एम.पी. सीट से दर्शन सिंह मट्टू को टिकट दिया गया था तो उस समय भी जिम्पा ने कांग्रेस से बगावत की थी और पार्टी प्रत्याशी के विरोधियों का साथ दिया था। जिम्पा जिस ईमानदारी की बात करते हुए आज अपनी मां पार्टी कांग्रेस पर आरोप लगा रहे हैं वह अपने गिरेबान में झांक लें कि उन्होंने पार्टी के साथ कितनी ईमानदारी की है। डा. नंदा ने कहा कि इनके द्वारा तीन बार बगावत किए जाने के बावजूद पार्टी ने इन्हें सुधरने का मौका देते हुए इन्हें प्रदेश के प्रतिष्ठित पद पर आसीन किया। लेकिन जिम्पा ने एक बार फिर से पार्टी से बगावत करके पार्टी के प्रति अपनी बगावत फितरत को साबित कर दिया है और पार्टी अब ऐसे लोगों को पार्टी में बने रहने का हक नहीं देती। इसलिए उनकी पार्टी विरोधी गतिविधियों को देखते हुए आज से तीन-चार दिन पहले ही पार्टी हाईकमांड को इस संबंधी रिपोर्ट भेज दी गई थी और उसकी एक कापी कैबिनेट मंत्री सुन्दर शाम अरोड़ा को दी गई थी ताकि पार्टी इनकी गतिविधियों पर खुद विचार करके विराम चिन्ह लगा सके। डा. नंदा ने कहा कि अब इन बातों से साबित हो जाता है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो मौका प्रस्त होते हैं और उनके लिए पार्टी या पार्टी के पदाधिकारियों के कहे शब्दों की कोई अहमियत नहीं होती, उनके लिए निजी स्वार्थ ही सर्वोपरि होता है।