वर्षा के देवता हैं बजीर-ए-चौहार घाटी देव पशाकोट : चौहार घाटी में विभिन्न स्थानों पर देव पशाकोट के हैं अनेक मंदिर, क्षेत्र के हैं सर्वमान्य देवता

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एएम नाथ। जोगिन्दर नगर, 05 फरवरी :  हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की पवित्र स्थली है। यहां पर कदम-कदम पर देवी-देवताओं के अनेक पवित्र स्थान मौजूद हैं। इन देवी देवताओं के प्रति लोगों की न केवल गहरी आस्था है बल्कि वे हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा भी हैं।
मंडी जिला के पधर उपमंडल के अंतर्गत चौहार घाटी में प्रसिद्ध देव पशाकोट के अनेक पवित्र स्थान मौजूद हैं। देव पशाकोट न केवल चौहार घाटी के सर्वमान्य देवता हैं बल्कि इन्हें बजीर-ए-चैहारघाटी भी कहा जाता है।
May be an image of 3 people, temple and textइनका पहाड़ी शैली में चौहार घाटी की ग्राम पंचायत तरस्वाण के मंठी बजगाण नामक गांव में प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर में पशाकोट देवता का रथ व भंडारगृह भी है। साथ ही चौहारघाटी के टिक्कन गांव के समीप ऊहल व थल्टूखोड़ नदी के संगम स्थल नालदेहरा में भी पहाड़ी शैली में देव पशाकोट का मदिंर बना हुआ है। इसके अलावा झटींगरी-बरोट मुख्य सडक़ पर देवता ढांक पर भी देव पशाकोट का मंदिर स्थापित है। इसके अलावा बरोट गांव के सिल्ह देहरा में भी इनका प्राचीन मंदिर स्थापित है। यही नहीं छोटा भंगाल के लोहारडी के पोलिंग गांव के समीप मराड़ में भी देव पशाकोट का प्राचीन मंदिर स्थित है, जिसे पशाकोट देवता का मूल स्थान माना जाता है। असीम प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य स्थापित देव पशाकोट के ये सभी देवस्थल श्रद्धालुओं व देव आस्था रखने वालों को आकर्षित करते हैं।
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हरेे भरे विशाल घने वृक्षों से युक्त देवता के इन पवित्र स्थानों पर स्वयं के जंगल के साथ-साथ देवता की निजी भूमि भी है। इस भूमि में देवता की आज्ञा के बिना कोई भी व्यक्ति किसी भी पेड़ से लोहा भी स्पर्श नहीं करा सकता। नालदेहरा स्थित ऊहल नदी पर देवता की आल (सरोवर) भी है तथा कहा जाता है कि पुरातन समय में देव पशाकोट अपने मूल स्थान मराड़ से चलकर अंत में यहीं पर आकर रूके थे।
देव पशाकोट का है एक चोकोर रथ, प्रत्येक वर्ष रथ के साथ करते हैं मेलों व हार का भ्रमण
देव पशाकोट का एक चौकोर रथ भी है। इस चौकोर रथ के शीर्ष पर पगड़ी सुशोभित है तथा गुंबदनुमा सोने का छतर भी है। रथ के चारों और चार देव मोहरे तथा सोना, चांदी, अष्टधातु सुशोभित हैं। रथ उठाने के लिए लकड़ी की लचीली अर्गलाएं लगी है, जिन्हें स्थानीय बोली में आगल भी कहा जाता है। सफेद, पीले, लाल इत्यादि परिधान युक्त देव पशाकोट का रथ प्रत्येक व्यक्ति में आस्था का संचार करता है।
देव पशाकोट (रथ द्वारा) निश्चित किए दिनों में अनेक स्थानों की यात्राओं में जाते है, जिसमें मंडी का अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव, राज्य स्तरीय लघु शिवरात्रि मेला जोगिन्दर नगर सहित कई स्थानीय मेले जैसे गलू की जातर, माला का मेला, सायर का मेला इत्यादि शामिल हैं। देवता के साथ विभिन्न वाद्य यंत्रों वाले यथा ढोल, कांसी, तुरही, नरसिंगा, शहनाई आदि सहित गूर, पुजारी, भंडारी, ध्वजवाहक आदि लगभग 45 देवलू साथ चलते हैं। इसके अतिरिक्त देव अपनी हार की हर वर्ष एक फेरा भी लगाते हैं जिसमें श्रद्धालु अपनी मन्नतों के पूरा होने पर देवता को अपनी मन्नत व जातर देते हैं।
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देवता पशाकोट को वर्षा का देवता भी माना जाता है। जब-जब क्षेत्र में सूखा पड़ता है तो लोग देवता से बारिश की मांग करते हैं। साथ ही यदि अत्यधिक बारिश होने पर भी लोग देवता की शरण में जाकर वर्षा रोकने की अरदास करते हैं। इसके अतिरिक्त भूत, व्याधि, बीमारी, चोरी-दंगा, शांक-समाधान तथा व्यक्तिगत मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी चौहारवासी देवता की शरण में जाते हैं। देवता का अपना विधान है जिसकी सभी को पालना करनी पड़ती है।
देव पशाकोट के इन विभिन्न पवित्र स्थानों पर सडक़ मार्ग के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। देव पशाकोट का पहला मंदिर पठानकोट-जोगिन्दर नगर-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर घटासनी नामक स्थान से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर देवता ढ़ांक में स्थित है। इनका दूसरा मंदिर लगभग 15 किलोमीटर दूर टिक्कन गांव के समीप नालदेहरा नामक स्थान पर स्थित है। यहां पर पहाड़ी शैली में निर्मित इनका प्राचीन मंदिर है। साथ ही यहां पर ऊहल नदी के मध्य देवता की आल (सरोवर) भी है। इसके अलावा मंठी बजगाण गांव में भी इनका भव्य मंदिर है जहां देवता का भंडार गृह भी है। साथ ही घटासनी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी प्रसिद्ध पर्यटक स्थल बरोट के सिल्ह देहरा में भी देव पशाकोट का प्राचीन मंदिर स्थित है। कहते हैं कि इनका मूल स्थान छोटा भंगाल क्षेत्र के पोलिंग गांव के मराड़ में स्थित है जो घटासनी से लगभग 35 किलोमीटर दूर है।
श्रद्धालु जोगिन्दर नगर के साथ-साथ मंडी से घटासनी होकर भी यहां पहुंच सकते हैं। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जोगिन्दर नगर है जबकि हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है।
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