एएम नाथ। हिमाचल में भी संयुक्त किसान मोर्चे ने पंजाब की तर्ज पर मंडी से भाजपा प्रत्याशी कंगना रनौत और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संयुक्त किसान मोर्चे के प्रदेश संयोजक हरीश चौहान ने वीरवार को शिमला में प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि कंगना ने दिल्ली में किसान आंदोलन के दौरान कहा था कि आंदोलन में किसान पैसे देकर लाए गए हैं। आज वह किस मुंह से किसानों से वोट मांग रही हैं।
हरीश चौहान ने कहा कि कंगना रनौत देश के अन्नदाताओं से माफी मांगे, जिन्हें लेकर कंगना ने किसानों पर शर्मनाक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत तौर पर संयुक्त किसान मोर्चे का कंगना से कोई बैर नहीं। यदि वह माफी नहीं मांगती तो किसान गांव-गांव जाकर बताएंगे कि कंगना और भाजपा का असल चेहरा जनता के बीच बताएंगे।
हरीश चौहान ने कहा कि देश का अन्नदाता जब दिल्ली में अपने हक लड़ाई लड़ रहा था। ऐसे वक्त में कंगना ने टिप्पणी की। हालांकि बाद में किसानों की लड़ाई को प्रधानमंत्री मोदी ने सही ठहराते हुए तीन कृषि कानून वापस ले लिए थे। इस दौरान संयुक्त किसान मोर्चे ने न केवल कंगना रनोट बल्कि हिमाचल में भाजपा के तीनों सांसदों को भी लपेटा। हरीश चौहान ने कहा कि हिमाचल के सांसद बताए कि उन्होंने बीते पांच साल में किसानों और बागवानों से जुड़े कितने सवाल लोकसभा में उठाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में बागवानों से इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने का जो वादा किया था, उसे आज तक पूरा क्यों नहीं किया गया? इस वजह से हिमाचल का 5500 करोड़ रुपए का सेब उद्योग संकट में आ गया है। संयुक्त किसान मंच के सह संयोजक सोहन ठाकुर ने कहा कि इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाना तो दूर मोदी सरकार ने इसे कम किया है।
इससे दुनिया के 44 देशों से थोक में सेब आयात किया जा रहा है और हिमाचल सहित जम्मू-कश्मीर के सेब पर संकट आ गया है। इस साल जिन बागवानों ने कोल्ड स्टोर में सेब रखा था, उन्हें करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है। उन्होंने कंगना और भाजपा को किसान विरोध बताया। सोहन ठाकुर ने कहा कि किसान आज भी नहीं भूला कि किस तरह उन्हें रोकने के लिए दिल्ली की सड़कों पर कीलें ठोकी गई। किसानों पर लाठियां बरसाई गई। इस आंदोलन के दौरान कई किसानों की जान गई है। SKM गांव गांव जाकर जनता को यह सब बताएगा। सोहन ठाकुर ने कहा कि हिमाचल में भी जब किसान कार्टन पर GST बढ़ाने के विरोध में लड़ाई लड़ रहा था तो राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार का रवैया बागवानों के प्रति अच्छा नहीं था।