होशियारपुर/दलजीत अजनोहा : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम गौतम नगर में एक धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी अंजलि भारती जी ने अपने प्रवचनों में कहा के तुलसीदास जी अपने दोहे में कहते हैं -तुलसी कबहु ना छाड़िए, क्षमा-शील-संतोष। ज्ञान, गरीबी, हरि भजन, कोमल वचन अदोष ।।
इस दोहे में जो ये ‘कोमल वचन अदोष’ हैं न, यही मृदुता है, विनम्रता है। जहाँ अहंकार नहीं होता, वहाँ विनम्रता स्वतः आ जाती है। इसलिए अहंकार का न होना ही उत्तम मार्दव का आधार है। आगे साध्वी जी ने कहा जैसे कोई घड़ा बाहर से स्वच्छ हो और अंदर मल से भरा हो, तो क्या आप उसमें कोई खाने का पदार्थ रखेंगे? नहीं! क्योंकि उस मल के संग से वो भोजन भी दूषित हो जायेगा। ऐसे ही हम अंदर से तो लोभ, मोह, इर्ष्या-द्वेष, तृष्णा, वासना की मैल से सने पड़े हैं। लेकिन बाहर से गंगा-यमुना में नहाकर अपने को शुचिता युक्त सिद्ध करने में लगे हैं। संतों के अनुसार यह दोषपूर्ण आचरण है, जो एक दिन हमें धर्म-मार्ग से दूर कर देगा। अंत में उन्होंने कहा संयमः खलु जीवनम् – स्वयं को संयमित रखना ही मनुष्य का जीवन कौशल है; अन्यथा तो पशु भी स्वछंद विचरण करते हैं। दैनिक जीवन का उदाहरण लीजिये। खाने में संयम न हो, तो उदर रोग हो जाते हैं। जिह्वा असंयमित होकर बोलने लग पड़े, तो रिश्ते असंतुलित हो जाते हैं। जब विचार असंयमित हो जाते हैं, तो मनोरोग जकड़ लेते हैं। अगर इन्द्रियाँ संयम में न रहें, तो विषय-वासनाओं के जाल में फँस जाती हैं। अतः सभी भवरोगों से बचने की उत्तम औषधि है- संयम !
विशेषकर साधक, अपने शक्ति पुंज को व्यर्थ न करें और उत्तम संयम धारण करें।