भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अटारी बॉर्डर से सटे गांव रानियां में 12 साल पहले शिअद-भाजपा गठबंधन सरकार की ओर से 31 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया सीड फार्म अब जांच के घेरे में आ गया है।
इस फार्म का निर्माण उन्नत बीज तैयार करने के लिए किया गया था, लेकिन तीन साल तक घाटे में चलने के बाद 2019 में कांग्रेस सरकार ने इसे बंद कर दिया। अब वर्तमान सरकार इस मामले की जांच कराने जा रही है।
आरटीआई में हुआ खुलासा
आरटीआई कार्यकर्ता नरेश जौहर द्वारा दायर आरटीआई के अनुसार, तत्कालीन अकाली-भाजपा सरकार ने 2008 से 2012 तक 682 एकड़, 6 कनाल, 13 मरले जमीन 30,72,74,070 रुपये में खरीदी थी। यह जमीन खेती के लिए अनुकूल नहीं थी और तस्करों और घुसपैठियों के निशाने पर रहती थी। आरटीआई में यह भी खुलासा हुआ कि फार्म को चलाने के लिए 30,21,317 रुपये की मशीनरी और 10,80,000 रुपये के 30 सबमर्सिबल पंप लगाए गए थे। इस तरह फार्म पर कुल 31,13,75,387 रुपये खर्च हुए।
तीन साल तक घाटे में चली खेती
आरटीआई के अनुसार, फार्म पर 2010-11 से 2012-13 तक बीज की खेती की गई, लेकिन तीनों सालों में घाटा हुआ। 2010-11 में तिल, तोरिया और गेहूं की खेती में कुल 13,39,274 रुपये का घाटा हुआ। 2011-12 में मूंगी की खेती में 5,72,500 रुपये का घाटा हुआ। 2012-13 में गेहूं की खेती में 9,62,767 रुपये का घाटा हुआ। इस तरह, तीन सालों में कुल 28,75,541 रुपये का घाटा हुआ।
2019 में कांग्रेस सरकार ने बंद किया फार्म
विभागीय अधिकारियों की रिपोर्ट के बाद, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 9 मई 2019 को फार्म को बंद कर दिया। रिपोर्ट में कहा गया कि फार्म फेंसिंग के पार होने के कारण जंगली जानवर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं और सुरक्षा कारणों से खेती करने में भी दिक्कत होती है।
कैबिनेट मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने कहा कि यह प्रोजेक्ट पूरी तरह से गलत था और जमीन की खरीद में भी फर्जीवाड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस मामले की जांच के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है और उच्च स्तरीय जांच की जाएगी। दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि फार्म की मशीनरी रखरखाव के अभाव में खराब हो गई है और पूरी जमीन जंगल बन गई है।