देहरादून: भारत के लोगों ने पहली बार अपनी धरती से पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन किए हैं, जो भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। यह ऐतिहासिक घटना 3 अक्टूबर को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी में स्थित पुराने लिपुलेख दर्रे से हुई। इससे पहले, भारतीय तीर्थयात्रियों को कैलाश पर्वत के दर्शन करने के लिए तिब्बत जाना पड़ता था, जिसके लिए चीन से अनुमति लेना आवश्यक था।
इस ऐतिहासिक यात्रा में पांच तीर्थयात्रियों का पहला जत्था 2 अक्टूबर को गुंजी कैंप पहुंचा। पिथौरागढ़ के जिला पर्यटन अधिकारी कृति चंद्र आर्य ने बताया कि तीर्थयात्रियों ने दर्शन के लिए 2.5 किलोमीटर की चढ़ाई की और कैलाश पर्वत के दर्शन किए। जब उन्होंने पवित्र पर्वत को देखा, तो उनकी आंखों में आंसू आ गए, और यह उनके लिए एक अद्वितीय और भावनात्मक अनुभव था। कुछ महीने पहले ही उत्तराखंड पर्यटन विभाग, सीमा सड़क संगठन (BRO), और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के अधिकारियों की एक टीम ने भारतीय इलाके से कैलाश पर्वत के स्पष्ट दर्शन के लिए इस जगह की खोज की थी।
उत्तराखंड सरकार ने तीर्थयात्रियों के लिए एक विस्तृत यात्रा कार्यक्रम तैयार किया है। इस यात्रा के दौरान तीर्थयात्री पहले धारचूला में स्वास्थ्य जांच करवाएंगे और वहीं से उन्हें परमिट मिलेगा। पहले दिन, हेलीकॉप्टर से पिथौरागढ़ से गुंजी पहुंचा जाएगा, जहां तीर्थयात्री रात बिताएंगे। दूसरे दिन, वे कार से आदि कैलाश के दर्शन के लिए जॉलिंगकॉन्ग जाएंगे और शाम को गुंजी लौटकर फिर रात गुजारेंगे। तीसरे दिन, तीर्थयात्री कैलाश व्यू पॉइंट जाएंगे और वापस लौटेंगे। चौथे दिन, हेलीकॉप्टर से पिथौरागढ़ वापस आएंगे।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस सफल यात्रा के आयोजन के लिए सभी संबंधित विभागों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह राज्य सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि अब शिव भक्तों को कैलाश-मानसरोवर यात्रा का इंतजार नहीं करना पड़ेगा और वे भारतीय सीमा के भीतर से ही भगवान शिव के दर्शन कर सकेंगे। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इस यात्रा को ऐतिहासिक घटना बताया और कहा कि राज्य सरकार शिव भक्तों को एक अनूठा और यादगार अनुभव प्रदान करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
कैलाश-मानसरोवर यात्रा कोविड के दौरान तीन साल तक बंद रही थी। हालांकि, पिछले साल चीन ने यात्रा के लिए वीजा देना शुरू किया, लेकिन इसके साथ कड़े नियम लागू कर दिए और यात्रा पर लगने वाले शुल्कों को लगभग दोगुना कर दिया। उदाहरण के तौर पर, अगर तीर्थयात्री नेपाल से किसी सहायक या हेल्पर को साथ ले जाना चाहता है, तो उसे 300 डॉलर यानी लगभग 25,000 रुपए अतिरिक्त चुकाने पड़ते हैं। इसे ‘ग्रास डैमेजिंग फी’ कहा जाता है, जिसका तर्क यह दिया गया कि तीर्थयात्रा के दौरान कैलाश पर्वत के आसपास की घास को नुकसान पहुंचता है और इसकी भरपाई यात्री से की जाएगी।
इस यात्रा के माध्यम से भारतीय तीर्थयात्रियों को अब तिब्बत जाने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे न केवल समय और खर्च बचेगा, बल्कि उन्हें भारतीय धरती से ही पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा।