राहुल और ममता मिल भी जाएं तो क्‍या जगदीप धनखड़ को कुर्सी से हटा पाएंगे? ….आर्टिकल 67B से समझ‍िए पूरा खेल

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नई दिल्ली । जॉर्ज सोरोस के मुद्दे ने सोमवार को राज्यसभा में इतना जोर पकड़ा कि कांग्रेस को सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए मजबूर होना पड़ गया। धनखड़ और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ घटक दलों के बीच तल्ख रिश्तों के बीच कई विपक्षी दल उन्हें उपराष्ट्रपति पद से हटाने के लिए प्रस्ताव संबंधी नोटिस देने पर विचार कर रहे हैं।
सूत्रों ने सोमवार को यह जानकारी दी. सूत्रों का कहना है कि यह कदम ‘बहुत जल्द’ उठाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि विपक्षी दलों ने नोटिस देने के लिए अगस्त में ही जरूरी संख्या में हस्ताक्षर ले लिए थे, लेकिन वे आगे नहीं बढ़े क्योंकि उन्होंने धनखड़ को ‘एक और मौका देने’ का फैसला किया था, लेकिन सोमवार के उनके आचरण को देखते हुए विपक्ष ने इस पर आगे बढ़ने का फैसला किया।
सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर अगुवाई कर रही है। जबकि तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के अलावा कई अन्य विपक्षी पार्टियां इस कदम का समर्थन कर रही हैं। जगदीप धनखड़ को पद से हटाने के लिए विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव ना सिर्फ तैयार है, बल्कि 70 सदस्यों ने उसपर हस्ताक्षर अपनी सहमति भी दे दी है। हालांकि, विपक्ष के इस वार का असफल होना तय माना जा रहा है क्योंकि सिर्फ एनडीए के पास ही राज्यसभा में 115 से ज्यादा सांसद हैं। ऐसे में विपक्ष कितना कामयाब होगा? यह देखना दिलचस्प होगा। बताया जा रहा है कि विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “सभापति का आचरण अस्वीकार्य है। वह भाजपा के किसी प्रवक्ता से ज्यादा वफादार दिखने का प्रयास कर रहे हैं।
राज्यसभा में सोमवार को सत्ता पक्ष एवं विपक्ष ने अलग-अलग मुद्दों पर भारी हंगामा किया जिसके कारण उच्च सदन की कार्यवाही तीन बार के स्थगन के बाद अपराह्न करीब तीन बजकर दस मिनट पर पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई। सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सदस्यों ने कांग्रेस तथा उसके नेताओं पर विदेशी संगठनों और लोगों के माध्यम से देश की सरकार तथा अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की कोशिश का आरोप लगाया और इस मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग की।
कहा जा रहा है कि जगदीप धनखड़ ने जॉर्ज सोरोस के मुद्दे पर जिस तरह का रुख अपनाया, उससे कांग्रेस नाराज हो गई और सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का मन बना लिया। सत्ता पक्ष की तरफ से जॉर्ड सोरोस का मुद्दा उठाने जाने के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने भी अडाणी समूह से जुड़ा मुद्दा उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित कांग्रेस के कई सदस्यों ने सोमवार को सभापति जगदीप धनखड़ पर राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान ‘पक्षपातपूर्ण रवैया’ अपनाने का आरोप लगाया.
क्या है संविधान का अनुच्छेद 67(बी)
संविधान के अनुच्छेद 67 में उपराष्ट्रपति की नियुक्ति और उन्हें पद से हटाने से जुड़े तमाम प्रावधान किए गए हैं। संविधान के अनुच्छेद 67(बी) में कहा गया है, “उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव, जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो, के जरिये उनके पद से हटाया जा सकता है। लेकिन कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा, जब तक कम से कम 14 दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो, जिसमें यह बताया गया हो ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है।
क्या है सभापति को हटाने की प्रक्रिया
राज्यसभा के सभापति को पद से हटाने के लिए यह जरूरी है कि उस प्रस्ताव पर कम-से-कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर हों, जिसके बाद उस प्रस्ताव को सचिवालय भेजना होता है। इसके लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस देना भी अनिवार्य है। फिर राज्यसभा में मौजूद सदस्यों के बहुमत आधार पर प्रस्ताव पारित होता है। फिर इस प्रस्ताव को लोकसभा में भेजा जाता है। क्योंकि राज्यसभा के सभापति देश के उप-राष्ट्रपति भी होते हैं। इसीलिए लोकसभा से भी इस प्रस्ताव का पास होना जरूरी है। गौरतलब है कि 20 दिसंबर शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन है।
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