शिमला: कोटगढ़ हॉर्टीकल्चर एंड एन्वायर्नमेंट सोसायटी ने बागवानी मंत्री को पत्र लिखकर APMC एक्ट 2005 और लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट 2009 को उसकी मूल भावना के हिसाब से लागू करने की मांग की है। सोसायटी के अध्यक्ष हरि चंद रोच और यूथ ग्रोवर एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र ठाकुर ने कहा कि इन दोनों एक्ट में बागवानों को कमीशन एजेंट के शोषण से बचाने का प्रावधान है। मगर, आज तक किसी भी सरकार ने इन्हें लागू करने का प्रयास नहीं किया। यही वजह है कि बागवान सरेआम लूटा जा रहा है। हरि चंद रोच ने कहा कि दोनों एक्ट यदि लागू नहीं किए गए तो उन्हें मजबूरन कोर्ट का रास्ता अपनाना पड़ेगा। सेब बागवान सरकार से कुछ नहीं मांग रहा, बल्कि एक्ट लागू करके कानूनी संरक्षण और अल्टरनेटिव मार्केट, फार्म गेट मार्केट, कॉम्पिटिटिव मार्केट, वैल्यू एडिड मार्केट चाहता है, ताकि बागवान अपने उत्पाद बेच सकें।
गौरतलब है कि किसानों-बागवानों को लूट से बचाने के लिए लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट 2009 और हिमाचल प्रदेश कृषि एवं उद्यानिकी उपज विपणन (विकास एवं विनियमन) (APMC) एक्ट 2005 बनाया गया है। मगर, इन एक्ट के कई प्रावधान एक से डेढ़ दशक बाद भी लागू नहीं किए गए हैं। इससे मंडियों में बागवान शोषण का शिकार हो रहे हैं। बिचौलिए चांदी कूट रहे हैं।
APMC एक्ट की धारा 39 की उप धारा 19 में किसानों की उपज बिकने के एक दिन के भीतर उन्हें पेमेंट दिए जाने का प्रावधान है। यदि कोई कमीशन एजेंट एक दिन में पेमेंट नहीं करता तो उस सूरत में APMC कमीशन एजेंट की फसल को जब्त करके उसकी ऑक्शन करा सकती है।
उस ऑक्शन में मिलने वाले पैसे का भुगतान किसान को करने का प्रावधान है। सच्चाई यह है कि कई बागवानों को 2 से 3 साल बाद भी बागवानों को पेमेंट नहीं दी जा रही है। APMC एक्ट में 5 से 8 रुपए अधिकतम मजदूरी की दरें तय हैं। वहीं प्रदेश की 90 फीसदी मंडियों में 15 से 25 रुपए प्रति पेटी मजदूरी काटी जाती है। इससे बागवानों की गाढ़ी कमाई का बड़ा हिसा बिचौलिए लूट रहे हैं।
ओपन बोली अनिवार्य : एक्ट की धारा 28(2) में किसानों का हर एक उत्पाद ओपन बोली करके बेचे जाने का प्रावधान है। मगर, राज्य की कई मंडियों में आज भी तोलिए, सेपरेटर और रुमाल के नीचे सेब के भाव किए जाते हैं।