जोगिन्दर नगर 12 फरवरी- हिमाचल प्रदेश को पर्यटन की दृष्टि से प्रकृति ने खूब संवारा है। प्रदेश में एक ओर जहां प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर अनेक पर्यटन स्थान हैं तो वहीं धार्मिक आस्था की दृष्टि से कई प्रसिद्ध धार्मिक स्थल भी मौजूद हैं। पर्यटन स्थलों में अधोसंरचना को मजबूत करने तथा अनछुए पर्यटन स्थलों में विश्व स्तरीय सुविधाएं उपलब्ध करवाने को प्रदेश की सुख की सरकार विशेष बल दे रही है। सरकार के इन प्रयासों से जहां प्रदेश में पर्यटकों को बेहतर अधोसंरचना सुविधाएं सुनिश्चित हो रही हैं तो वहीं अनछुए पर्यटन स्थलों के विकास को भी खासा बल दिया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला की चौहार घाटी तथा कांगड़ा जिला का छोटा भंगाल क्षेत्र दो ऐसे अनछुए पर्यटन स्थल हैं, जो पर्यटन की दृष्टि से बेहद खूबसूरत हैं। इन दोनों क्षेत्रों में पर्यटकों के लिए प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से वे सभी स्थान उपलब्ध हैं जिनका अनुभव व आनंद प्राप्त करने को पर्यटक हिमाचल प्रदेश आना चाहते हैं।
यदि मंडी जिला की चौहार घाटी की बात करें तो बरोट गांव ऊहल नदी के दोनों ओर बसा एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। बरोट में जहां प्राकृतिक खूबसूरती भरी पड़ी है तो वहीं सर्दियों में बर्फ का भी दीदार होता है। बरोट गांव ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। हिमाचल प्रदेश की मैगावॉट स्तर की पहली पनबिजली परियोजना का डैम इसी गांव में निर्मित किया गया है।
वर्ष 1922 के आसपास तत्कालीन पंजाब सरकार के चीफ इंजीनियर कर्नल बी.सी. बैटी ने जोगिन्दर नगर के शानन नामक स्थान पर पनबिजली परियोजना निर्माण की परिकल्पना की थी। वर्ष 1925 में तत्कालीन भारत सरकार व मंडी रियासत के राजा जोगिन्द्र सेन के साथ पनबिजली परियोजना निर्माण को लेकर एक समझौता हुआ। इसी समझौते के तहत जोगिन्दर नगर कस्बे के शानन नामक स्थान पर पहले चरण में 48 मैगावॉट पनबिजली परियोजना का निर्माण कार्य शुरू हुआ जो वर्ष 1932 में पूरा हुआ। इस परियोजना का डैम भी ऊहल नदी पर बरोट गांव में ही निर्मित किया गया है। बरोट गांव तक भारी भरकम मशीनरी पहुंचाने को शानन से बरोट तक हॉलेज रोप वे ट्राली लाइन बिछाई गई थी, जिसकी निशानियां आज भी मौजूद हैं तथा पर्यटक इस ऐतिहासिक ट्रॉली लाइन का भी दीदार बरोट स्थित जीरो प्वाइंट के पास कर सकते हैं। हॉलेज रोप वे (हेरिटेज ट्राली लाइन) दुनिया भर में अपनी तरह की एक अनूठी ट्रॉली है। इस ट्राली लाइन की कुल लंबाई 10.65 किलोमीटर है तथा कुल 6 चरणों में चलाई जाती थी। वर्तमान में शानन की ओर से केवल दो चरणों में ही यह ट्राली लाइन विंच कैंप तक चलती है जबकि अंतिम चरण में जीरो प्वाइंट से बरोट डैम साईट तक इस लाइन को उखाड़ दिया गया है।
ऊहल नदी व लंबाडग नदियों में प्राकृतिक तौर पर ट्राउट मछली पाई जाती है तथा एंगलिंग के शौकीन पर्यटकों के लिए यह स्थान उपयुक्त है। इसके अलावा बरोट व आसपास के गांव में देवदार, कायल, बान, बुरांस इत्यादि के घने जंगल यहां की प्राकृतिक खूबसूरती को चार चांद लगाते हैं। इसके अतिरिक्त टै्रकिंग के शौकीन पर्यटकों के लिए भी कई बेहतरीन स्थान मौजूद हैं। बरोट से लगभग 5 किलोमीटर दूर रूलंग नाला वाटरफॉल स्थित है जिसका पर्यटक आनंद उठा सकते हैं। साथ ही बरोट गांव के समीप ही जलान में कर्नल बी.सी. बैटी द्वारा निर्मित ऐतिहासिक विश्राम गृह भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
धार्मिक दृष्टि से देव श्री हुरंग नारायण जी व देव श्री पशाकोट जी यहां के प्रमुख देवता हैं। देव हुरंग नारायण जी का मंदिर गांव हुरंग में है जो बरोट से लगभग 30 किलोमीटर जबकि देव पशाकोट के अलग-अलग मंदिर हैं जिनमें नालदेहरा (टिक्कन) बरोट से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मंदिर प्रमुख है। इसके अलावा चौहार घाटी में कई अन्य देवी देवताओं के भी मंदिर मौजूद हैं। पर्यटक देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त कर आध्यात्मिक दृष्टि से एक अलग अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं। देव परंपरा के अनुसार देव स्थानों में चमड़े से निर्मित वस्तुओं सहित प्रवेश तथा धूम्रपान पूर्णतया निषेध है। इसके अतिरिक्त कई गांवों में भी चमड़े से बनी वस्तुओं व धुम्रपान करना पूरी तरह प्रतिबंधित है। चौहार वासियों ने देव आस्था सहित लोक परंपराओं व मान्यताओं को अभी भी जिंदा रखा हुआ है। पुरातन समय में चौहार घाटी मंडी रियासत का हिस्सा रही है।
छोटा भंगाल क्षेत्र की बात करें तो यह कांगड़ा जिला के बैजनाथ उपमंडल का हिस्सा है। मुल्थान इस क्षेत्र का प्रमुख स्थान है जो तहसील मुख्यालय भी है तथा बरोट गांव से महज एक पुल की दूरी पर स्थित है। छोटा भंगाल क्षेत्र को ऊहल तथा लंबाडग नदियां चौहार घाटी से अलग करती हंै। पर्यटक छोटा भंगाल के मुल्थान के अतिरिक्त लोहारडी, बडाग्रां, कोठी कोहड़, नलोहता, राजगुंधा, पलाचक इत्यादि क्षेत्रों का भी भ्रमण कर सकते हैं। ये सभी स्थान प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से बेहद खूबसूरत हैं। पर्यटक यहां की प्राकृतिक सुंदरता को निहारने के साथ-साथ यहां के देवी-देवताओं का भी आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही पर्यटन की दृष्टि से ट्रैकिंग व कैंपिंग की सुविधा उपलब्ध है। पर्यटक कोठी कोहड गांव के समीप प्राकृतिक वाटर फॉल का भी आनंद उठा सकते हैं। पुरातन समय मेें छोटा भंगाल भंगाल रियासत के साथ-साथ कुल्लू व कांगड़ा रियासतों को हिस्सा रहा है।
कृषि व पशुपालन लोगों का प्रमुख व्यवसाय है तथा आलू यहां की प्रमुख फसल है। इसके अलावा लोग विभिन्न प्रकार की सब्जियां जिनमें हरा मटर, बंद व फूल गोभी प्रमुख हैं का भी उत्पादन करते हैं। साथ ही लोग गेहूं, मक्की के अलावा अन्य पारंपरिक फसलें जैसे कोदरा (रागी) इत्यादि को भी उगाते हैं। इस क्षेत्र के लोग भेड़ व बकरी पालन भी करते हैं।
चौहारघाटी के बरोट व छोटा भंगाल पहुंचने के लिए पर्यटक जोगिन्दर नगर या फिर पधर कस्बों से वाया झटिंगरी सडक़ मार्ग द्वारा आसानी से आ सकते हैं। छोटा भंगाल क्षेत्र में भी सडक़ मार्ग से पहुंचा जा सकता है। छोटा भंगाल व चौहारघाटी तक अब पर्यटक विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग साईट बीड-बिलिंग से होते हुए भी यहां पहुंच सकते हैं। सर्दियों में बीड़-बिलिंग के राजगुंधा क्षेत्र में अत्यधिक बर्फबारी होने के कारण इस ओर से आना मुश्किल होता है, लेकिन पर्यटक बरोट की ओर से आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।
पर्यटकों के ठहराव को यहां कई होम स्टे, होटल तथा सरकारी विश्राम गृह मौजूद हैं। इसके अलावा प्रकृति का आनंद उठाने को कई कैंपिंग साइट्स भी उपलब्ध हैं। चौहारघाटी का बरोट तथा छोटा भंगाल क्षेत्र सडक़ मार्ग से प्रमुख धार्मिक स्थल बैजनाथ से लगभग 55 से 60 किलोमीटर तो वहीं मंडी के ओर से भी पर्यटक इतना ही सफर तय कर यहां पहुंच सकते हैं। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन लगभग 40 किलोमीटर दूर जोगिन्दर नगर है जबकि हवाई अड्डा कांगडा धर्मशाला है।