नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चार लोगों के द्वारा दायर की गई एसएलपी को खारिज कर दिया। इसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत उनकी दोषसिद्धि के बाद जमानत रद्द कर दी गई थी। उन्हें 6 लोगों की हत्या का दोषी ठहराया गया था, लेकिन बाद में चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने उन्हें अंतरिम जमानत दे दी थी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, दोषियों को 10 जनवरी को गणेश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में इलाहाबाद हाई कोर्ट की बेंच के द्वारा पारित निर्देशों के आधार पर जमानत पर रिहा कर दिया गया था। इस आदेश के मुताबिक, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेटों को जनरल निर्देश पारित किए कि वे उन दोषियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करें, जिनकी छूट या समय से पहले रिहाई का आवेदन पेंडिंग था। इसके बाद, कई दोषियों को अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया।
हालांकि, 25 मई को अंबरीश कुमार वर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने गणेश के मामले को खारिज कर दिया और कहा कि छूट का अधिकार केवल सरकार के पास में है और बेंच ऐसे निर्देश जारी नहीं कर सकती थी। तीन जजों की बेंच के फैसले के बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट द्वारा दोषियों को दी गई जमानत को रद्द कर दिया गया। इसे चुनौती देते हुए दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा : सुप्रीम कोर्ट में यह मामला जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीष चंद्र शर्मा की बेंच के सामने सूचीबद्ध किया गया। जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा, ‘6 लोगों की हत्या की गई। मजिस्ट्रेट ने गणेश के मामले में पारित आदेश के आधार पर आपको जमानत दी। गणेश के मामले में पारित आदेश को पूर्ण पीठ के पास भेजा गया। पूर्ण पीठ ने कहा, ‘नहीं, मजिस्ट्रेट ऐसा नहीं कर सकते’ अगर ऐसे मामलों में लोगों को जमानत दी जाएगी, जहां एसएलपी खारिज हो चुकी है, तो अराजकता फैल जाएगी।’
वकील ने दलील दी : वकील ने दलील दी कि जमानत रद्द करने का हाई कोर्ट का आदेश गलत है क्योंकि इसमें उन आधारों पर विचार किया गया जो मामले में नहीं उठाए गए थे। इसके अलावा उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल को पूर्ण पीठ के संदर्भ से पहले ही जमानत दे दी गई थी और जमानत रद्द करने वाली खंडपीठ को पूर्ण पीठ के आदेश का पालन नहीं करना चाहिए था।
जस्टिस सतीष चंद्र शर्मा ने कहा, ‘आपने 6 लोगों की हत्या की है और चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट आपको जमानत दे रहे हैं। ऐसा कभी नहीं सुना गया। बहुत खेद है। आप राज्य को आपकी रिमिशन याचिका पर फैसला लेने का निर्देश देने के लिए एक रिट याचिका दायर कर सकते थे, लेकिन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आपको जमानत नहीं दे सकते थे।’