क्या है सिंधु जल संधि? …पहलगाम आतंकी हमले के बाद क्यों पूर्व राजनयिक कंवल सिब्बल कर रहे हैं इसके स्थायी निलंबन की मांग?

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एएम नाथ। शिमला :  जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे को लेकर की गई एक ऐतिहासिक संधि है, जो 1960 में वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित हुई थी। इस समझौते के तहत छह नदियों का पानी दोनों देशों में बांटा गया. भारत को तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलुज) का अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) का उपयोग करने की अनुमति दी गई. यह समझौता इस उद्देश्य से हुआ था कि दोनों देशों में जल को लेकर कोई संघर्ष न हो और कृषि व जीवन-यापन में बाधा न आए. हालांकि, भारत ने हमेशा इस संधि का सम्मान किया, जबकि पाकिस्तान पर आतंकवाद को समर्थन देने के आरोप लगातार लगते रहे हैं।
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भारत देता है पाकिस्तान को कितना पानी?
इस संधि के तहत पाकिस्तान को सिंधु और उसकी सहायक नदियों का करीब 80% जल मिल जाता है, जो उसकी कृषि व्यवस्था के लिए रीढ़ है, खासकर पंजाब और सिंध प्रांतों में. भारत को जहां तीन नदियों पर पूरा नियंत्रण है, वहीं पश्चिमी नदियों पर भारत सीमित परियोजनाएं ही चला सकता है।
अब क्यों उठ रही है संधि को खत्म करने की मांग?
पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद पूर्व विदेश सचिव और जेएनयू के चांसलर कंवल सिब्बल ने इस संधि को स्थायी रूप से निलंबित करने की मांग की है. उनका कहना है, “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।
उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा कि पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के जवाब में भारत को अब सिर्फ निंदा नहीं, ठोस रणनीतिक कदम उठाने होंगे, और सिंधु जल संधि को निलंबित करना एक बड़ा और शांतिपूर्ण दबाव बनाने का तरीका हो सकता है।
आखिर क्यों है यह मांग इतनी अहम?
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि इस जल पर निर्भर है. अगर भारत इस जल प्रवाह को नियंत्रित करता है, तो इससे पाकिस्तान पर गंभीर असर पड़ सकता है. युद्ध जैसे हालात पैदा किए बिना यह एक रणनीतिक तरीका हो सकता है जिससे पाकिस्तान को साफ संदेश दिया जा सके कि आतंकवाद का समर्थन अब बर्दाश्त नहीं होगा. कंवल सिब्बल का मानना है कि यह कदम न केवल पाकिस्तान को झटका देगा, बल्कि बांग्लादेश जैसे अन्य इस्लामिक कट्टरता से प्रभावित देशों को भी भारत की “ज़ीरो टॉलरेंस” नीति का संदेश देगा।
क्या यह संधि तोड़ी जा सकती है?
हालांकि भारत ने अब तक इस संधि का पालन किया है, लेकिन यह कोई स्थायी या अविभाज्य समझौता नहीं है. अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत यदि कोई पक्ष संधि की शर्तों का उल्लंघन या दुश्मनी जारी रखता है, तो दूसरा पक्ष इसे निलंबित करने या वापस लेने की बात कर सकता है. हाल के वर्षों में भारत ने कई बार इसका संकेत दिया है, खासकर उरी और पुलवामा हमलों के बाद।
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