एएम नाथ। शिमला : हिमाचल प्रदेश में अयोग्य घोषित किए गए विधायकों की पेंशन और अन्य विशेषाधिकार समाप्त करने के लिए राज्य सरकार ने राज्यपाल को विधेयक भेजा है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार ने संशोधन विधेयक पारित किया। इस संशोधन के अनुसार, राज्य के ऐसे सभी विधायकों की पेंशन समाप्त की जानी है, जिन्हें दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित किया गया है। इतना ही नहीं, इस संशोधन में विधायकों का कार्यकाल भी समाप्त करने का प्रावधान है। राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला की मंजूरी के बाद ही यह विधेयक कानून का रूप लेगा।
छह विधायकों को दिया गया था अयोग्य करार : फरवरी में बजट सत्र के दौरान दलबदल विरोधी कानून के तहत कांग्रेस के छह विधायकों को अयोग्य घोषित किया गया था। इन छह विधायकों में सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा, इंद्रदत्त लखनपाल, रवि ठाकुर, चैतन्य शर्मा और देवेंद्र कुमार भुट्टो शामिल हैं। इन छह विधायकों में चैतन्य शर्मा और देवेंद्र कुमार भुट्टो पहली बार विधायक बने थे। अगर यहां बिल कानून बन जाता है तो पहली बार विधायक बने दोनों विधायकों को पेंशन और अन्य विशेष अधिकार मिलना बंद हो जाएंगे। इसका असर अन्य चार विधायकों की वरिष्ठता पर भी पड़ेगा। अयोग्य घोषित होने के बाद कांग्रेस के सभी छह विधायकों ने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर उपचुनाव लड़ा था। इनमें से सिर्फ सुधीर शर्मा और इंद्रदत्त लखनपाल ही चुनाव जीतकर वापस आ पाए। अन्य चार को उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।
इस विधेयक को लाने के पीछे की वजह : हिमाचल प्रदेश विधान सभा (सदस्य भत्ते एवं पेंशन) अधिनियम, 1971 विधान सभा के सदस्यों को भत्ते एवं पेंशन प्रदान करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था। वर्तमान में अधिनियम में भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत विधान सदस्यों के दलबदल को हतोत्साहित करने का कोई प्रावधान नहीं है।
अतः संवैधानिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए, राज्य की जनता द्वारा दिए गए जनादेश की रक्षा करने के लिए, लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए तथा इस संवैधानिक पाप को रोकने के लिए हिमाचल प्रदेश विधान सभा (सदस्य भत्ते एवं पेंशन) अधिनियम, 1971 में संशोधन करना आवश्यक हो गया है। यह विधेयक उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए है।