विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया के एक फैसले ने बदल दिया सारा गणित
एएम नाथ। शिमला : कांग्रेस के छह बागी विधायकों की किस्मत का फैसला अब जनता ही करेगी। सुप्रीम कोर्ट में हालांकि सोमवार 18 मार्च को केस लगा है, लेकिन अब चुनाव शेड्यूल घोषित होने के बाद वहां से भी विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया के फैसले पर रोक जैसी राहत नहीं मिल पाएगी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि चुनाव प्रक्रिया शुरू हो गई है और बीच में कोर्ट का हस्तक्षेप अब नहीं बनता। हालांकि ये विधायक खुद पर लगे डिसक्वालिफिकेशन के दाग को मिटाने के लिए केस आगे लड़ सकते हैं। यदि इन्हें किसी भी कोर्ट से पहले स्टे मिल गया होता तो चुनाव आयोग के शेड्यूल घोषित करती बार इन्हें उपचुनाव की लिस्ट में नहीं लिया जाना था।
क्योंकि किसी भी कोर्ट से स्पीकर के फैसले पर स्टे नहीं था और विधानसभा ने 29 फरवरी को ही छह सीटों को खाली नोटिफाई कर दिया था, इसलिए चुनाव आयोग को लोकसभा चुनाव के शेड्यूल के साथ उपचुनाव का शेड्यूल भी देना पड़ा। अब यदि बागी नेताओं को विधानसभा में विधायक रहना है, तो दोबारा चुनकर ही आना पड़ेगा। दोबारा चुनाव में अभी कई तरह के सवाल बीच में खड़े हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या सभी सीटों पर इन नेताओं को भाजपा अपने यहां एडजस्ट कर पाएगी या नहीं, यह इतना आसान भी नहीं है।
उपचुनाव लडऩे की नौबत क्यों आई : 27 फरवरी को राज्यसभा का चुनाव विधानसभा के बजट सत्र के दौरान हुआ था। इसमें कांग्रेस के छह विधायकों सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा, इंद्रदत्त लखनपाल, रवि ठाकुर, चैतन्य शर्मा और देवेंद्र भुट्टो ने तीन अन्य निर्दलीय विधायकों के साथ भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन को वोट दिया था।