ब्लड बैंकिंग व्यवस्था हिमाचल में चरमराई – सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की उड़ रही धज्जियां : उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष श्रीवास्तव

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एएम नाथ। शिमला :  ब्लड बैंकिंग व्यवस्था हिमाचल प्रदेश में चरमरा गई है। स्वास्थ्य विभाग सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और संबंधित नियम-कानूनों की खुलेआम अवहेलना कर रहा है। स्थिति यह है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित राज्य ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल पिछले आठ वर्षों से निष्क्रिय पड़ी है।

न तो इसका पुनर्गठन किया गया है और न ही इसकी कोई बैठक हुई है। इस लापरवाही के चलते प्रदेश में ब्लड बैंकों की स्थिति बदहाल हो गई है जिससे मरीजों को समय पर आवश्यकतानुसार रक्त उपलब्ध नहीं हो पाता। इससे रक्त की खरीद-फरोख्त का खतरा बढ़ गया है जो गंभीर स्वास्थ्य संकट पैदा कर सकता है।  यह खुलासा समाज सेवा और रक्तदान के क्षेत्र में सक्रिय संगठन उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव ने सोमवार को एक पत्रकार वार्ता में किया। उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस मामले में त्वरित हस्तक्षेप की मांग की है। श्रीवास्तव ने कहा कि यह न केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है बल्कि इससे आम मरीजों की जिंदगी खतरे में पड़ रही है।

सुप्रीम कोर्ट ने 1996 में दिया था फैसला :  अजय श्रीवास्तव ने बताया कि कॉमन कॉज बनाम भारत सरकार (CWP 91/1992) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 4 जनवरी 1996 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। इसके तहत संपूर्ण ब्लड बैंकिंग व्यवस्था के संचालन और निगरानी के लिए केंद्र में नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल और सभी राज्यों में राज्य ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल गठित करने के निर्देश दिए गए थे। अदालत ने राज्यों की एड्स कंट्रोल सोसायटी को सिर्फ एड्स जागरूकता और रक्त सुरक्षा तक सीमित कर दिया था। लेकिन हिमाचल प्रदेश में राज्य ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल शुरू से ही केवल कागजों तक सीमित रही। राज्य के स्वास्थ्य सचिव इसके अध्यक्ष होते हैं लेकिन यह काउंसिल अब पूरी तरह निष्क्रिय हो चुकी है। हैरानी की बात यह है कि पिछले आठ वर्षों से इसकी कोई बैठक तक नहीं हुई है।

 स्टाफ और संसाधनों की भारी कमी : उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि राज्य ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल को ब्लड बैंकों से संबंधित योजनाओं, उनके संचालन और आवश्यकताओं की पूर्ति की जिम्मेदारी निभानी होगी। साथ ही रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाने होंगे। लेकिन यह काउंसिल निष्क्रिय रहने के कारण प्रदेश के आईजीएमसी अस्पताल समेत अन्य प्रमुख ब्लड बैंकों में डॉक्टर, नर्स, टेक्नीशियन, डाटा एंट्री ऑपरेटर, ड्राइवर और अन्य संसाधनों की भारी कमी बनी हुई है। इसके चलते केंद्र सरकार द्वारा 100 फ़ीसदी ब्लड कंपोनेंट बनाने और इस्तेमाल करने का लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है।

ब्लड कंपोनेंट तकनीक का नहीं हो रहा उचित उपयोग

उन्होंने कहा कि एक यूनिट रक्त से तीन अलग-अलग (प्लाज्मा, प्लेटलेट और आरबीसी) कंपोनेंट बनाए जा सकते हैं, जिससे तीन मरीजों को फायदा हो सकता है। लेकिन हिमाचल के चार प्रमुख ब्लड बैंकों में कंपोनेंट सेपरेशन मशीनें उपलब्ध होने के बावजूद उनका उचित उपयोग नहीं किया जा रहा है।

श्रीवास्तव ने कहा कि प्रदेश में एफेरेसिस मशीन भी किसी ब्लड बैंक में उपलब्ध नहीं है। इस मशीन की मदद से रक्तदाता से केवल आवश्यक कंपोनेंट लिया जाता है और बाकी रक्त वापस शरीर में चला जाता है। इससे एक व्यक्ति साल में 24 बार तक प्लेटलेट्स दान कर सकता है। लेकिन इस तकनीक के अभाव में हिमाचल में रक्तदान की पूरी प्रक्रिया सीमित हो गई है।

उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में कुल 24 ब्लड बैंक हैं जिनमें 20 सरकारी और चार निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं। लेकिन राज्य ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल निष्क्रिय होने से इन ब्लड बैंकों की समस्याओं की सुनवाई ही नहीं हो रही है।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार राज्य ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल का कार्यालय किसी बड़े चिकित्सा संस्थान में स्थापित होना चाहिए और इसका संचालन एक निदेशक के नेतृत्व में किया जाना चाहिए। लेकिन हिमाचल में इसका कार्यालय इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज से दूर खलीनी में एक किराए के भवन में चलाया जा रहा है।

इसके अलावा प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग नेशनल ब्लड पॉलिसी, वॉलंटरी ब्लड डोनेशन प्रोग्राम और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के कई प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा है।

                      अजय श्रीवास्तव ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि राज्य ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल को तत्काल सक्रिय किया जाए और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने यह भी मांग की कि ब्लड बैंकिंग में हो रही लापरवाही के लिए जिम्मेदार स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए ताकि मरीजों को रक्त की किल्लत से जूझना न पड़े।

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