एएम नाथ। शिमला : हिमाचल हाईकोर्ट ने जंगी थोपन पोवारी हाइड्रो प्रोजेक्ट से जुड़े मामले में अडानी पावर को झटका और राज्य सरकार को बड़ी राहत दी है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने गुरुवार को सिंगल बेंच के पुराने फैसले को पलटते हुए अडानी पावर को 280 करोड़ रुपए की अग्रिम प्रीमियम राशि लौटाने के फैसले को पलट दिया।
जस्टिस विवेक ठाकुर और बिपिन चंद्र नेगी की बेंच ने कहा कि अडानी ग्रुप प्रीमियम राशि का हकदार नहीं है, जबकि हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने सरकार को दो महीने के भीतर राशि लौटाने के आदेश दिए थे, अन्यथा 9 फीसदी वार्षिक ब्याज के साथ राशि चुकानी होगी। दरअसल, हिमाचल सरकार ने टैंडर के आधार पर जंगी थोपन प्रोजेक्ट 2006 में ब्रेकल कंपनी को दिया था। तब कंपनी ने 280 करोड़ रुपए सरकार को अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर सरकार के पास जमा कराए थे। हिमाचल के एडवोकेट जनरल अनूप रत्न ने कहा, ब्रेकल कंपनी ने जंगी थोपन प्रोजेक्ट फ्रॉड करके हासिल किया था। यह फ्रॉड अदालत में भी साबित हो चुका है।
ब्रेकल का फ्रॉड साबित होने के बाद अडानी ने हिमाचल सरकार से 280 करोड़ रुपए का अपफ्रंट प्रीमियम प्रदेश सरकार से वापस मांगा। प्रदेश सरकार ने अडानी समूह की इस मांग को खारिज कर दिया और कहा, अडानी पावर से प्रदेश सरकार का कोई संबंध नहीं। इसके खिलाफ अडानी पावर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट की सिंगल बैंच ने कुछ समय पहले अडानी पावर के पक्ष में फैसला सुनाया। कहा कि प्रदेश सरकार 280 करोड़ अडानी पावर को वापस करें।
सरकार ने दी चुनौती सिंगल बैंच के फैसले को : सिंगल बैंच के इसी फैसले को प्रदेश सरकार ने डबल बैंच में चुनौती दी। प्रदेश सरकार ने अदालत में कहा कि ब्रेकल कंपनी ने फ्रॉड करके प्रोजेक्ट हासिल किया है। सरकार ने अदालत में कहा, हिमाचल गवर्नमेंट और अडानी पावर के बीच कभी भी कोई एग्रीमेंट नहीं हुआ। सरकार ने ब्रेकल कंपनी के साथ जरूर एग्रीमेंट किया था। ऐसे में अडानी समूह अपफ्रंट प्रीमियम का हकदार नहीं है। अगर अपफ्रंट प्रीमियम बनता है तो वह ब्रेकल का बनता था। मगर ब्रेकल का फ्रॉड साबित होने के बाद यह कंपनी भी प्रीमियम की हकदार नहीं रही।
ब्रेकल और जंगी थोपन का विवाद है पुराना : ब्रेकल कंपनी और जंगी थोपन पावर प्रोजेक्ट का विवाद वर्षों पुराना है। वर्ष 2006 में राज्य सरकार ने 960 मेगावाट क्षमता का जंगी थोपन प्रोजेक्ट का आवंटन ब्रेकल को किया था। मगर ब्रेकल ने अडानी का पैसा इन्वेस्ट कराया था। तत्कालीन धूमल सरकार को जब मालूम पड़ा कि कंपनी ने फर्जी दस्तावेज जमा किए हैं तो धूमल सरकार ने इसकी जांच का जिम्मा विजिलेंस को सौंपा। इसके बाद सत्ता परिवर्तन हुआ और पूर्व वीरभद्र सरकार ने जंगी थोपन प्रोजेक्ट रिलायंस को भी देना चाहा। मगर रिलायंस ने इसे बनाने से इनकार कर दिया। पूर्व जयराम सरकार ने कंपनी पर वित्तीय बिड में गलती का आरोप लगाते हुए अपफ्रंट मनी लौटाए बगैर यह प्रोजेक्ट सतलुज जल विद्युत निगम (SJVNL) को दे दिया। इसके बाद से अडानी पावर हाईकोर्ट में अपफ्रंट मनी को लेकर लड़ाई लड़ता रहा। सिंगल बैंच में अडानी लड़ाई जीत गया। मगर डबल बैंच में हार गया।
करोड़ों की राजस्व हानि : इस प्रोजेक्ट के कारण राज्य सरकार को करोड़ों रुपए की राजस्व हानि हुई है। यदि प्रोजेक्ट समय पर तैयार हो गया होता तो इससे सरकार को रॉयल्टी के तौर पर करोड़ों की राशि सरकारी खजाने में मिल गई होती। अनूप रत्न ने कहा, इस प्रोजेक्ट के निर्माण में देरी की वजह से 9 से 10 हजार करोड़ रुपए का सरकार को नुकसान हो चुका है।