भगवान शंकर का एक रहस्यमयी मंदिर : मंदिर पर हर 12 साल बाद आकाशीय बिजली गिरती, मंदिर को नहीं होता नुकसान

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रोहित भदसाली।  कुल्लू :  हिमाचल प्रदेश में कई देवी-देवताओं के मंदिर हैं, जिसके कारण इसे देवभूमि भी कहा जाता है। देवभूमि में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनकी अपनी-अपनी खासियतें हैं। आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदियों के संगम के पास एक ऊंचे पहाड़ पर भगवान शंकर का एक रहस्यमयी मंदिर है, जिसका रहस्य आज तक नहीं सुलझ पाया है।इस मंदिर पर हर 12 साल बाद आकाशीय बिजली गिरती है, लेकिन फिर भी मंदिर को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता है। आइए जानते हैं इस रहस्यमयी मंदिर के बारे में विस्तार से…

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर जिस घाटी पर स्थित है उसका आकार सर्प के समान है। भगवान शंकर ने इस नाग का वध कर दिया। हर 12 साल में एक बार इस मंदिर पर भयानक बिजली गिरती है। आकाशीय बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग टूट गया है. इसके बाद मंदिर के पुजारी टूटे हुए शिवलिंग पर मलहम के रूप में मक्खन लगाते हैं, ताकि महादेव को दर्द से राहत मिल सके। इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, यहां कुलान्त नाम का एक राक्षस रहता था। यह राक्षस अपनी शक्ति से साँपों का रूप धारण कर लेता था। दैत्य कुलान्त ने एक बार अजगर का रूप धारण किया और मथान गांव के पास ब्यास नदी में बैठ गये, जिससे नदी का प्रवाह रुक गया और पानी बढ़ने लगा। इसके पीछे उसकी मंशा यह थी कि यहां रहने वाले सभी जानवर डूबकर मर जाएंगे। यह देखकर महादेव क्रोधित हो गये। इसके बाद महादेव ने एक माया रची. भगवान शिव राक्षस के पास गए और उससे कहा कि उसकी पूंछ में आग लग गई है।

महादेव की बात सुनकर जैसे ही दैत्य ने पीछे मुड़कर देखा, शिवजी ने अपने त्रिशूल से कुलान्त के सिर पर प्रहार किया और वह वहीं मर गया। कहा जाता है कि राक्षस का विशाल शरीर एक पर्वत में तब्दील हो गया था, जिसे आज हम कुल्लू का पहाड़ कहते हैं।कहानी के अनुसार, भगवान शिव ने कुलान्त का वध करने के बाद इंद्र से हर 12 साल में वहां बिज गिराने को कहा। भगवान शिव ने जन-धन की हानि न हो इसलिए ऐसा करने को कहा। भगवान स्वयं बिजली की मार सहकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

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