चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए गठित प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड में केवल कुछ जातियों के उम्मीदवारों के चयन के नियम को चुनौती देने वाली याचिका को वापस लेने की छूट देते हुए खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट के जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने नवीन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिए। कोर्ट ने उसे बेहतर तथ्यों के साथ दोबारा याचिका दायर करने की भी छूट दी। याचिका में सवाल उठाया गया कि राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए गठित प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड में केवल जाट, जाट सिख और राजपूत जाति के आवेदकों को ही नियुक्ति क्यों दी जाती है।
खास जातियों पर फोकस : याचिका के अनुसार हमीरपुर आर्मी रिक्रूटमेंट ऑफिस के निदेशक ने 12 अगस्त 2017 में एक विज्ञापन जारी किया था। इस विज्ञापन के माध्यम से राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड पद हेतु आवेदन मांगे गए थे। अन्य योग्यताओं के साथ यह भी शर्त थी कि इस नियुक्ति में सिर्फ जाट, जाट सिख और राजपूत जाति के आवेदक ही शामिल हो सकते हैं। मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से बताया गया कि राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड के चयन में किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं होता। एक तय नियम के अनुसार जो सेना द्वारा तय किए जाते हैं। राष्ट्रपति के अंगरक्षक में 14 राज्यों के और 16 जातियों (एससी/एसटी सहित) के नागरिक राष्ट्रपति के अंगरक्षक के रूप में सेवा कर रहे हैं और पहले भी सेवा कर चुके हैं। भारतीय सेना में सैनिकों की भर्ती सेना नियम, 1954 के परविधान द्वारा शासित होती है।
जाति और धर्म का का उल्लेख : केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ता ने राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की भर्ती में बार-बार जाति, धर्म और क्षेत्र आधारित भर्ती का उल्लेख किया है जो गलत है। रेजिमेंटों का नाम भी कुछ वर्गों/जातियों/क्षेत्रों के नाम पर रखा जाता है व राष्ट्रपति के अंगरक्षक 150 सैनिकों वाली एक छोटी इकाई है जिसे राष्ट्रपति भवन में प्रोटोकॉल के अनुसार समारोह करने का काम सौंपा जाता है।
भर्ती के चरण में कोई वर्ग आधारित भेदभाव नहीं था और प्रत्येक जाति किसी भी रेजिमेंट में शामिल हो सकती है और केवल कठोर चयन के बाद ही कर्मियों को शामिल किया जाता है। हाई कोर्ट को बताया गया कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट इस तरह की कई याचिका खारिज कर चुका है। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि 2019 से इस मामले में याची द्वारा कोई पक्ष नहीं रखा गया व बार बार समय देने की मांग की जा रही है, इस लिए कोर्ट इस याचिका को खारिज करते हुए वापस लेने की छूट देता है।