चंडीगढ़, 17 फरवरी: स्मार्ट सिटी सलाहकार समिति की बैठक आज सुबह आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता सांसद एवं पूर्व केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने की। बैठक में चंडीगढ़ की मेयर हरप्रीत कौर बबला, नगर निगम के कमिश्नर अमित कुमार, चंडीगढ़ के डिप्टी कमिश्नर निशांत यादव और चंडीगढ़ स्मार्ट सिटी मिशन के अन्य अधिकारी उपस्थित थे। ऐसे में क्योंकि अगले वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए केंद्रीय बजट में स्मार्ट सिटी मिशन के लिए बजटीय आवंटन शून्य है और मिशन समाप्त हो रहा है, यह महसूस किया गया कि इस मिशन के दौरान पिछले 10 वर्षों में पूरी की गई परियोजनाओं की समीक्षा की जानी चाहिए।
तिवारी ने सवाल कि पिछले 10 वर्षों में विभिन्न परियोजनाओं पर कितनी धनराशि खर्च की गई है। स्मार्ट सिटी मिशन के अधिकारियों ने अध्यक्ष को बताया कि 36 परियोजनाओं पर कुल 853 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं और 53 करोड़ रुपए परिचालन व्यय के रूप में अभी भी उनके पास लंबित हैं। तिवारी ने व्यवहारिक तौर पर पूछा कि वास्तव में एक शहर को स्मार्ट क्या बनाता है, स्मार्ट सिटी की परिभाषा क्या है। जो उन्होंने पिछली बार भी पूछा था, जिसने उत्तर की एक किरण प्रदान की, लेकिन संतोषजनक रूप से उत्तर नहीं दिया। इस दिशा में, 853 करोड़ रुपए में से लगभग 304 करोड़ रुपये सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट परियोजना की स्थापना पर खर्च किए गए, 334 करोड़ रुपये एक इंटीग्रेटेड कमांड और कंट्रोल कम्प्लेक्स की स्थापना पर खर्च किए गए और बाकी राशि कई सहायक परियोजनाओं पर खर्च की गई। तिवारी जानना चाहते थे कि इस तथ्य को देखते हुए कि स्मार्ट सिटी मिशन मार्च, 2025 को समाप्त हो जाएगा, मिशन की अवधि के दौरान पिछले 10 वर्षों में बनाई गई सभी संपत्तियों की जिम्मेदारी कौन लेगा। जिस पर तिवारी को बताया गया कि सरकार के विभिन्न विभाग इन परियोजनाओं की जिम्मेदारी लेंगे, उदाहरण के लिए इंटीग्रेटेड कमांड और कंट्रोल सेंटर को सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग को हस्तांतरित किया जाएगा, जबकि एसटीपी आदि को नगर निगम को हस्तांतरित किया जाएगा।
तिवारी ने इस बात पर बहुत गंभीर चिंता व्यक्त की कि स्मार्ट सिटी योजना के तहत मनी माजरा में लागू की गई 24×7 जलापूर्ति परियोजना के 8 महीने बाद भी मनी माजरा के निवासियों को सुबह 2 घंटे और शाम को 2 घंटे पानी ही उपलब्ध कराया जा रहा है। उन्होंने जानना चाहा कि 24×7 जलापूर्ति प्रदान करने की प्रतिबद्धता क्यों जताई गई थी, लेकिन केवल 4 घंटे पानी ही उपलब्ध कराया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि यह बात उनके ध्यान में लाई गई है कि पिछले पांच वर्षों में मनी माजरा में तीन अलग-अलग पाइपलाइनें बिछाई गई हैं और उन्होंने जानना चाहा कि इतनी सारी अलग-अलग पाइपलाइनें क्यों बिछाई गईं और यदि पाइपलाइन का एक सेट पहले से उपलब्ध था, तो उसका उपयोग 24×7 जलापूर्ति परियोजना के लिए क्यों नहीं किया गया।
तिवारी ने यह भी जानना चाहा कि क्या स्मार्ट सिटी के तहत क्रियान्वित विभिन्न परियोजनाओं की योजनाओं का कोई एक्टरनल ऑडिट, परफॉर्मेंस ऑडिट या तकनीकी ऑडिट सरकार की किसी एजेंसी द्वारा कराया गया है।
अंत में, तिवारी ने स्मार्ट सिटी के अधिकारियों को सलाह दी कि इस बात का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए कि स्मार्ट सिटी मिशन के तहत जो संपत्तियां बनाई गई हैं, उनका उपयोग प्रभावी और कुशल तरीके से किया जाए और स्मार्ट सिटी मिशन के समाप्त होने के कारण वे पूरी तरह से बर्बाद न हो जाएं।