बीजेपी को लोग चुनावी मशीन कहते हैं, जो कभी बंद नहीं होती. बात कुछ हद तक सच भी लगती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक लाइन बोलते हैं, और पूरी की पूरी पार्टी उसे पूरा करने में जुट जाती है, तभी बिहार जैसे नतीजे आते हैं।
आप याद कीजिए, 18 जुलाई 2023 का पीएम मोदी का वो बयान जो उन्होंने एनडीए के सहयोगियों की मीटिंग में दिया था. पीएम मोदी ने कहा था, हमें 50% वोट शेयर का टारगेट हासिल करना होगा. फिर यही बात, उन्होंने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनावों के दौरान कही, और पूरी पार्टी इसके पीछे लग गई. नतीजा सबके सामने है. बिहार में यही कमाल नजर आता है. और यह ममता बनर्जी, अखिलेश यादव की टेंशन बढ़ाने वाला है।
बिहार चुनाव के अब तक आए नतीजों को देखें तो बीजेपी को लगभग 21%, जेडीयू को लगभग 19%, एलजेपी को 5% और अन्य सहयोगियों को लगभग 7 फीसदी वोट मिलता नजर आ रहा है. अगर इन सबको जोड़ दें तो एनडीए का वोट प्रतिशत 50 फीसदी को पार कर जाता है. एनडीए की बंपर जीत का असली फार्मूला यही है. आपको यकीन न हो तो पिछले चुनावों को देख लीजिए।
जहां 50% वोट, वहीं बंपर जीत :
- महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एनडीए ने 49.75% वोट शेयर हासिल कर धमाकेदार जीत दर्ज की थी. एनडीए ने क्लीनस्वीप करते हुए 230 सीटें अपने नाम कर ली थीं।
- दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 47.15% वोट हासिल कर सबको चौंका दिया था. पॉपुलर मानी जाने वाली आम आदमी पार्टी सरकार को एक झटके में बीजेपी ने विदाई का रास्ता दिखा दिया था।
- मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर लगभग 48.62% फीसदी रहा और बीजेपी ने क्लीनस्वीप किया. बीजेपी को 163 सीटें मिलीं. इस चुनाव में बीजेपी ने अपने वोट शेयर में 8 फीसदी की बढ़ोत्तरी की थी।
- छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में BJP का वोट शेयर 46.27% रहा. बीजेपी ने 54 सीटें जीतीं. वोट प्रतिशत और सीटों के लिहाज से यह अब तक की सबसे बड़ी जीत रही।
- राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 41.70% रहा. वोट शेयर में 2.41% की वृद्धि दर्ज की गई. 115 सीटों के साथ धमाकेदार जीत दर्ज की. 2018 में बीजेपी के पास 73 सीटें थीं।
आधे वोट मतलब दो तिहाई सीटें अपनी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पता है कि अगर हम 50 फीसदी वोट शेयर हासिल कर लेते हैं तो दो तिहाई सीटें अपनी झोली में डाली जा सकती हैं. नतीजें इस बात की तस्दीक भी करते हैं. इस मिशन को पूरा करने के लिए बीजेपी ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. बिहार का ही उदाहरण लें तो अलग अलग जातीय समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियों को अपने साथ लिया और एक बड़ा वोट बैंक बना लिया. वोट शेयर बढ़ाने का मतलब था सिर्फ बीजेपी वोट नहीं बल्कि गठबंधन में सहयोगियों के वोट जोड़ना. एनडीए-गठबंधन ने पुराने मतदाताओं, नए मतदाताओं और लाभार्थियों को जोड़ने की कोशिश की. युवा-महिला-ग्रामीण वोटर्स पर फोकस बढ़ा. राज्य-स्तरीय अभियानों में बूथ-स्तरीय मैपिंग, सोशल मीडिया-प्रचार और योजनाओं की लिस्टिंग की. इसलिए इसे राजनीतिक परिवर्तन के एक मॉडल के रूप में अपनाया और नतीजा सबके सामने है।
